November 23, 2024 2:20 AM

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विंढमगंज -: नही थम रहा हरे पेड़ो का कटना, वन विभाग की भूमिका सन्देहास्पद।

  • दिन में होती है पेड़ो की कटाई और रात के अंधेरे में होता है ढुलान।
  • स्थानीय लोगो और अधिकारियों के मदद से हो रहा पेड़ो की तस्करी।
  • जंगल की कटान से ग्रामीण हैं त्रस्त और जेब गरम कर अधिकारी हैं मस्त।

विंढमगंज- सोनभद्र

पप्पू यादव/ जितेंद्र चन्द्रवंशी- सोनप्रभात

विंढमगंज रेंज के घने जंगलों में हरे पेड़ो की कटान रुकने का नाम नही ले रहा हैं, कुछ ग्रामीणों का कहना है, कि दिन में जंगल के हरे पेड़ को काटे जाते हैं और रात में दर्जनों बैल के सहारे ढुलाई किया जाता है। पेड़ो की कटाई कोई एक दिन का काम नही है बल्कि प्रतिदिन कटाई और ढुलाई का काम किया जाता है।

 

  • किस रास्ते से पेड़ो के लकड़ियों की ढुलाई की जाती है?

कटे पेड़ो की ढुलाई फुलवार के रास्ते से किया जाता है, जो फुलवार, महुली,बोम,पकरी, जाताजुआ,बघमंदवा गांव में ले जाया जाता हैं। बाहरी व्यापारियों को ऊँचे दामो पर बेच दिया जाता है। (हल्दी महुआ)के जंगलों में अत्यधिक मात्रा में किमती पेड़ो का कटान हुआ हैं, जिसमें कथे की लकड़ी की संख्या ज्यादा है। जिसके सूखे ठूठ आज भी जंगल मे सबूत के तौर पर यह बया कर रहा है ,कि यह अवैध रूप से कटान हुआ है।

  • बीते रविवार को कटे पेड़, विभागीय कर्मचारियों की भूमिका अहम।

स्थानीय स्तर से उच्च स्तरीय अधिकारियों तक की संलिप्तता के बगैर पेड़ो का कटना सम्भव नही है। ताजा मामला रविवार की है, जब जंगलों में अवैध कटान की पड़ताल की गई तो खैर (कत्थे ) के पेड़ के कटे हुए ठूठ मिले। जंगलों में जिस तरह से कटान हुई है या हो रही है इसे देख कर जंगलों के अस्तित्व खतरे में प्रतीत होता दिख रहा है। जिसमे विभागीय अधिकारियों का जेब गरम कर कटान किया जा रहा है , वनकर्मियों को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास नही हैं। जंगलों में करीब 20 कत्थे के पेड़ नए व पुराने कटे मिले।

सूत्रों की माने तो जंगलों से किमती पेड़ो की कटान कर तस्करी की जाती है, और वन विभाग के कुछ कर्मी स्थानीय लोगो की मदद से कत्थे को बाहरी व्यापारियों से ऊँचे दामो पर सौदा कर के मस्त रहते हैं।जांच हेतु कभी जंगल मे जाने का नाम विभाग के कर्मचारी / अधिकारी नही लेते हैं।

पर्यावरण प्रेमियों का मानना हैं, कि यहाँ से बड़े पैमाने पर तस्करी किया जा रहा है, जो बहुत बड़ा प्रकृति का हनन हैं। इसी तरह से तस्करी होता रहा तो वह दिन दूर नही जब सिर्फ जंगल मे केवल ठूठ ही देखने को मिलेंगे।

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