June 23, 2025 5:56 PM

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Chaiti Chhath 2025 : सूर्य उपासना का महापर्व, जानें तिथि, विधि और महत्व

Chaiti Chhath 2025 : चैती छठ, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से संतान सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शामिल है।

Sonprabhat Digital Desk

Chaiti Chhath 2025 : लोक आस्था का महापर्व छठ, हिंदू धर्म में सूर्य उपासना का प्रमुख पर्व है, जिसे पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। साल में दो बार मनाए जाने वाले इस पर्व में कार्तिक मास का छठ सबसे प्रसिद्ध है, जबकि चैत्र मास में मनाया जाने वाला चैती छठ भी विशेष महत्व रखता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

चैती छठ 2025 की तिथियां और शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में चैती छठ का पर्व 3 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है और इसका समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 2 अप्रैल 2025 को रात 11:49 बजे शुरू होगी और 3 अप्रैल 2025 को रात 9:41 बजे समाप्त होगी

चैती छठ पूजा का संपूर्ण कार्यक्रम

1 अप्रैल 2025: नहाय-खाय (पहला दिन)

चैती छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती (व्रत रखने वाले) पवित्र स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। परंपरा के अनुसार, कद्दू-भात (लौकी की सब्जी और चने की दाल के साथ चावल) का सेवन किया जाता है। यह दिन शरीर को शुद्ध और मन को पवित्र करने के लिए समर्पित होता है।

2 अप्रैल 2025: खरना (दूसरा दिन)

खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद, 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन मां स्कंदमाता और कुमार कार्तिकेय की पूजा की जाती है।

3 अप्रैल 2025: संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)

चैती छठ के तीसरे दिन व्रती शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान छठ घाटों पर विशेष आयोजन किए जाते हैं, जहां व्रती जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। सूर्य को दूध और जल से अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

4 अप्रैल 2025: उगते सूर्य को अर्घ्य (चौथा दिन)

पर्व का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने का होता है। माना जाता है कि सूर्यदेव के आशीर्वाद से संतान सुख, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है और व्रती सात्विक भोजन कर उपवास समाप्त करते हैं।

छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

छठ महापर्व को लोक आस्था और धार्मिक मान्यताओं से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान सूर्य और छठी मईया की कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह पर्व महिलाओं द्वारा संतान सुख और परिवार की समृद्धि के लिए रखा जाता है।

ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले छठ पूजा की शुरुआत की थी। वह प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर भगवान सूर्य की उपासना करते थे, जिससे उन्हें अपार शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती थी। यही परंपरा आगे चलकर लोक आस्था के महापर्व के रूप में प्रसिद्ध हुई।

छठ पूजा में गीतों और प्रसाद का महत्व

छठ पर्व के दौरान विशेष पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जिनमें लोक संस्कृति और भक्ति की झलक देखने को मिलती है। “केलवा के पात पर उगेले सूरज देव” और “पटना के घाट पर” जैसे गीत इस पर्व की पहचान बन चुके हैं।

प्रसाद में ठेकुआ, गुड़ की खीर, फल और चावल के लड्डू का विशेष महत्व होता है। यह प्रसाद शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है, जिसे व्रती उपवास समाप्त करने के बाद ग्रहण करते हैं।

चैती छठ का वैज्ञानिक पहलू

छठ पूजा न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व सूर्य की ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और शरीर को डिटॉक्सिफाई करने का अवसर प्रदान करता है। जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और मानसिक शांति मिलती है।

(Disclaimer: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और लोक परंपराओं पर आधारित है। व्रत और पूजा विधि को अपनाने से पहले विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें। Sonprabhat News इस जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)

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