April 30, 2025 8:45 AM

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Chaitra Navratri 2025 : 51 शक्तिपीठ जहाँ देवी सती के अंग गिरे और पूजनीय स्थल बने

Chaitra Navratri 2025 शक्तिपीठ हिंदू धर्म में देवी शक्ति के सबसे पवित्र स्थल माने जाते हैं। जानें, कैसे माता सती के शरीर के विभिन्न अंग गिरने से इन 51 तीर्थ स्थलों की स्थापना हुई और इनका आध्यात्मिक महत्व क्या है।

धर्म डेस्क  | सोनप्रभात न्यूज़

Chaitra Navratri 2025 : भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक परंपरा में शक्तिपीठों का विशेष स्थान है। ये 51 शक्तिपीठ माता सती के उन पवित्र स्थानों को दर्शाते हैं, जहां उनके शरीर के अंग और आभूषण गिरे थे। इन स्थानों को लेकर मान्यता है कि यहाँ देवी शक्ति की विशेष ऊर्जा विद्यमान है, जो भक्तों को आशीर्वाद और शक्ति प्रदान करती है। आज हम आपको इन शक्तिपीठों की पौराणिक कथा और उनके स्थानों के बारे में बताने जा रहे हैं।

पौराणिक कथा : शक्तिपीठों की उत्पत्ति

शक्तिपीठों की कहानी हिंदू धर्म के एक मार्मिक प्रसंग से शुरू होती है। माता सती, जो भगवान शिव की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री थीं, अपने पिता द्वारा आयोजित एक यज्ञ में शामिल हुईं। वहां दक्ष ने शिव का अपमान किया, जिसे सहन न कर पाने के कारण सती ने अग्निकुंड में अपने प्राण त्याग दिए। इस घटना से क्रोधित और दुखी शिव ने माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाकर पूरे विश्व में भ्रमण शुरू कर दिया। इससे ब्रह्मांड में अराजकता फैलने लगी। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां उनके अंग और आभूषण गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ये स्थान आज भी भक्तों के लिए तीर्थस्थल हैं।

शक्तिपीठों का महत्व

शक्तिपीठ केवल पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र भी माने जाते हैं। प्रत्येक शक्तिपीठ माता सती के किसी न किसी अंग से जुड़ा है और वहां देवी अलग-अलग रूपों में पूजी जाती हैं। देवी पुराण में इन 51 शक्तिपीठों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ये स्थान भक्तों को मोक्ष, सुरक्षा और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले माने जाते हैं।

सभी 51 शक्तिपीठों का सूची, स्थान और मान्यताएं

  1. देवी बाहुला
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, वर्धमान जिला
    • महत्व: माता सती का बायां हाथ यहाँ गिरा था, जो शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। यहाँ पूजा से भक्तों को साहस और बल मिलता है।
  2. मंगल चंद्रिका
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, उज्जैनी (वर्धमान के पास)
    • महत्व: यहाँ माता की दाहिनी कलाई गिरी थी, जो कर्म और कर्तव्य की शक्ति का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
  3. भ्रामरी देवी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, जलपाइगुड़ी
    • महत्व: माता का बायां पैर यहाँ गिरा था, जो गति और प्रगति का प्रतीक है। यहाँ पूजा से जीवन में स्थिरता आती है।
  4. देवी जुगाड्या
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, वर्धमान के पास
    • महत्व: दाएं पैर का अंगूठा यहाँ गिरा था, जो संतुलन और दिशा का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में सही मार्ग मिलता है।
  5. मां कालिका
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, कालीघाट (कोलकाता)
    • महत्व: बाएं पैर का अंगूठा यहाँ गिरा था, जो शक्ति और विजय का प्रतीक है। यहाँ पूजा से भय और शत्रुओं पर विजय मिलती है।
  6. महिषमर्दिनी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, बीरभूम जिला
    • महत्व: माता का भ्रूण (माथा) यहाँ गिरा था, जो बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को मानसिक शांति और ज्ञान मिलता है।
  7. देवगर्भ
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, बीरभूम जिला
    • महत्व: यहाँ माता की अस्थियाँ गिरी थीं, जो जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक हैं। यहाँ पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  8. देवी कपालिनी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, पूर्व मेदिनीपुर
    • महत्व: बायीं एड़ी यहाँ गिरी थी, जो स्थिरता और आधार का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में स्थायित्व मिलता है।
  9. फुल्लरा
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, बीरभूम जिला
    • महत्व: माता के होंठ यहाँ गिरे थे, जो वाणी और संवाद का प्रतीक हैं। यहाँ पूजा से वाणी में मधुरता आती है।
  10. अवंति
    • स्थान: मध्य प्रदेश, उज्जैन (क्षिप्रा नदी तट)
    • महत्व: ऊपरी होंठ यहाँ गिरा था, जो सौंदर्य और आकर्षण का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को रूप और गुणों में वृद्धि होती है।
  11. नंदिनी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, बीरभूम जिला
    • महत्व: गले का हार यहाँ गिरा تھا, जो समृद्धि और वैभव का प्रतीक है। यहाँ पूजा से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  12. देवी कुमारी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, रत्नाकर नदी के पास
    • महत्व: दायां कंधा यहाँ गिरा था, जो शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
  13. देवी उमा
    • स्थान: भारत-नेपाल सीमा
    • महत्व: बायां कंधा यहाँ गिरा था, जो मातृत्व और करुणा का प्रतीक है। यहाँ पूजा से संतान सुख और परिवार में प्रेम बढ़ता है।
  14. कालिका देवी
    • स्थान: पश्चिम बंगाल, बीरभूम जिला
    • महत्व: पैर की हड्डी यहाँ गिरी थी, जो जीवन की यात्रा का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में सही दिशा मिलती है।
  15. विमला देवी
    • स्थान: बांग्लादेश, मुर्शिदाबाद जिला
    • महत्व: माथे का मुकुट यहाँ गिरा था, जो सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। यहाँ पूजा से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
  16. मां भवानी
    • स्थान: बांग्लादेश, चट्टोग्राम (चंद्रनाथ पर्वत)
    • महत्व: दायीं भुजा यहाँ गिरी थी, जो कर्म और शक्ति का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को कार्य में सफलता मिलती है।
  17. सुनंदा
    • स्थान: बांग्लादेश, शिकारपुर (बरिसाल)
    • महत्व: नाक यहाँ गिरी थी, जो सांस और प्राण का प्रतीक है। यहाँ पूजा से स्वास्थ्य और दीर्घायु मिलती है।
  18. देवी जयंती
    • स्थान: बांग्लादेश, जयंतिया परगना
    • महत्व: बायीं जांघ यहाँ गिरी थी, जो शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में स्थायित्व मिलता है।
  19. महालक्ष्मी
    • स्थान: बांग्लादेश, जैनपुर गांव
    • महत्व: गला यहाँ गिरा था, जो वाणी और संवाद का प्रतीक है। यहाँ पूजा से वाणी में मधुरता और प्रभावशीलता आती है।
  20. यशोरेश्वरी
    • स्थान: बांग्लादेश, खुलना जिला
    • महत्व: हाथ और पैर के कुछ हिस्से यहाँ गिरे थे, जो कर्म और गति का प्रतीक हैं। यहाँ से भक्तों को कार्य में सफलता और प्रगति मिलती है।
  21. देवी अर्पण (अपर्णा)
    • स्थान: बांग्लादेश, भवानीपुर (बेगड़ा)
    • महत्व: बाएं पैर की पायल यहाँ गिरी थी, जो सौभाग्य और सुरक्षा का प्रतीक है। यहाँ पूजा से जीवन में सुख और सुरक्षा मिलती है।
  22. देवी इंद्रक्षी
    • स्थान: श्रीलंका, लंका शक्तिपीठ
    • महत्व: दाएं पैर की पायल यहाँ गिरी थी, जो शक्ति और विजय का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को शत्रुओं पर विजय मिलती है।
  23. माता ललिता
    • स्थान: उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद (प्रयाग संगम)
    • महत्व: हाथ की अंगुली यहाँ गिरी थी, जो कर्म और कौशल का प्रतीक है। यहाँ पूजा से कार्य में कुशलता बढ़ती है।
  24. देवी मणकर्णी (विशालाक्षी)
    • स्थान: वाराणसी, मणिकर्णिका घाट
    • महत्व: कान की मणि यहाँ गिरी थी, जो श्रवण और ज्ञान का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  25. देवी शिवानी
    • स्थान: उत्तर प्रदेश, चित्रकूट
    • महत्व: दायां वक्ष यहाँ गिरा था, जो मातृत्व और पोषण का प्रतीक है। यहाँ पूजा से संतान सुख और परिवार में सुख-शांति मिलती है।
  26. चूड़ामणि (उमा)
    • स्थान: उत्तर प्रदेश, वृंदावन
    • महत्व: केश की चूड़ामणि यहाँ गिरी थी, जो सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को प्रेम और सौंदर्य की वृद्धि होती है।
  27. श्रावणी
    • स्थान: तमिलनाडु, भद्रकाली मंदिर
    • महत्व: पीठ यहाँ गिरी थी, जो शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक है। यहाँ पूजा से जीवन में सहनशक्ति बढ़ती है।
  28. सावित्री
    • स्थान: हरियाणा, कुरुक्षेत्र
    • महत्व: एड़ी यहाँ गिरी थी, जो स्थिरता और आधार का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में स्थायित्व मिलता है।
  29. देवी गायत्री
    • स्थान: राजस्थान, अजमेर (गायत्री पर्वत)
    • महत्व: कलाई यहाँ गिरी थी, जो कर्म और कौशल का प्रतीक है। यहाँ पूजा से कार्य में सफलता मिलती है।
  30. मां काली
    • स्थान: मध्य प्रदेश, अमरकंटक (शोंदेश शक्तिपीठ)
    • महत्व: बायां नितंब यहाँ गिरा था, जो शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को सुरक्षा और शक्ति मिलती है।
  31. देवी नर्मदा
    • स्थान: मध्य प्रदेश, अमरकंटक (नर्मदा नदी तट)
    • महत्व: दायां नितंब यहाँ गिरा था, जो पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक है। यहाँ पूजा से मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
  32. देवी नारायणी
    • स्थान: तमिलनाडु, कन्याकुमारी-तिरुवंतपुरम मार्ग
    • महत्व: ऊपरी दाड़ यहाँ गिरी थी, जो ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को ज्ञान और विवेक मिलता है।
  33. वाराही
    • स्थान: उत्तर प्रदेश, पंचसागर
    • महत्व: निचली दाढ़ यहाँ गिरी थी, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। यहाँ पूजा से भय और शत्रुओं पर विजय मिलती है।
  34. श्री सुंदरी
    • स्थान: आंध्र प्रदेश, कुरनूल श्रीशैलम
    • महत्व: दाएं पैर की पायल यहाँ गिरी थी, जो सौभाग्य और सुरक्षा का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में सुख और सुरक्षा मिलती है।
  35. चंद्रभागा
    • स्थान: गुजरात, जूनागढ़ (सोमनाथ मंदिर के पास)
    • महत्व: अमाशय यहाँ गिरा था, जो पाचन और स्वास्थ्य का प्रतीक है। यहाँ पूजा से स्वास्थ्य और दीर्घायु मिलती है।
  36. भ्रामरी देवी (महाराष्ट्र वाली)
    • स्थान: महाराष्ट्र, नासिक (गोदावरी घाटी)
    • महत्व: ठोड़ी यहाँ गिरी थी, जो वाणी और संवाद का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को वाणी में मधुरता आती है।
  37. राकिनी देवी
    • स्थान: आंध्र प्रदेश, कोटिलिंग्शेवर मंदिर
    • महत्व: गाल यहाँ गिरा था, जो सौंदर्य और आकर्षण का प्रतीक है। यहाँ पूजा से रूप और गुणों में वृद्धि होती है।
  38. देवी अंबि
    • स्थान: राजस्थान, भरतपुर
    • महत्व: बायें पैर की अंगुली यहाँ गिरी थी, जो गति और प्रगति का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में प्रगति मिलती है।
  39. महाशिरा (महामाया)
    • स्थान: नेपाल, पशुपति मंदिर के पास (गुजयेश्वरी मंदिर)
    • महत्व: दोनों घुटने यहाँ गिरे थे, जो शक्ति और सहनशीलता का प्रतीक हैं। यहाँ पूजा से जीवन में सहनशक्ति और शक्ति बढ़ती है।
  40. गंडकी चंडी
    • स्थान: नेपाल, पोखरा (गण्डकी नदी तट, मुक्तिनाथ मंदिर)
    • महत्व: कपोल यहाँ गिरा था, जो सौंदर्य और आकर्षण का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को रूप और गुणों में वृद्धि होती है।
  41. जयदुर्गा देवी
    • स्थान: कर्नाटक
    • महत्व: दोनों कान यहाँ गिरे थे, जो श्रवण और ज्ञान का प्रतीक हैं। यहाँ पूजा से ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  42. कोट्टरी देवी
    • स्थान: पाकिस्तान, बलूचिस्तान (हिंगलाज शक्तिपीठ)
    • महत्व: सिर यहाँ गिरा था, जो बुद्धि और नेतृत्व का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को नेतृत्व क्षमता और ज्ञान मिलता है।
  43. महिष मर्दिनी (नैना देवी)
    • स्थान: हिमाचल प्रदेश, बिलासपुर
    • महत्व: आंखें यहाँ गिरी थीं, जो दृष्टि और अंतर्दृष्टि का प्रतीक हैं। यहाँ पूजा से जीवन में सही दृष्टिकोण मिलता है।
  44. देवी अंबिका
    • स्थान: हिमाचल प्रदेश, कांगड़ा
    • महत्व: जीभ यहाँ गिरी थी, जो वाणी और संवाद का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को वाणी में मधुरता और प्रभावशीलता मिलती है।
  45. देवी महामाया
    • स्थान: कश्मीर, पहलगाम (अमरनाथ)
    • महत्व: गला यहाँ गिरा था, जो वाणी और संवाद का प्रतीक है। यहाँ पूजा से वाणी में शक्ति और प्रभाव बढ़ता है।
  46. त्रिपुरमालिनी
    • स्थान: पंजाब, जालंधर
    • महत्व: दायां वक्ष यहाँ गिरा था, जो मातृत्व और पोषण का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को संतान सुख और परिवार में सुख-शांति मिलती है।
  47. माता अंबाजी
    • स्थान: गुजरात, अंबाजी मंदिर
    • महत्व: हृदय यहाँ गिरा था, जो प्रेम और करुणा का प्रतीक है। यहाँ पूजा से हृदय में प्रेम और शांति बढ़ती है।
  48. मां दाक्षायनी
    • स्थान: तिब्बत, मानसरोवर के पास (मानस शक्तिपीठ)
    • महत्व: दाहिनी हथेली यहाँ गिरी थी, जो दान और सेवा का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को सेवा और दान की भावना मिलती है।
  49. देवी विमला (उड़ीसा वाली)
    • स्थान: उड़ीसा, भुवनेश्वर
    • महत्व: नाभि यहाँ गिरी थी, जो जीवन और पोषण का प्रतीक है। यहाँ पूजा से जीवन में समृद्धि और स्वास्थ्य मिलता है।
  50. त्रिपुर सुंदरी
    • स्थान: त्रिपुरा, माताबढ़ी पर्वत शिखर (उदरपुर)
    • महत्व: दायां पैर यहाँ गिरा था, जो गति और प्रगति का प्रतीक है। यहाँ से भक्तों को जीवन में प्रगति और सफलता मिलती है।
  51. कामाख्या देवी
    • स्थान: असम, गुवाहाटी (कामगिरी)
    • महत्व: योनि यहाँ गिरी थी, जो सृजन और शक्ति का प्रतीक है। यहाँ पूजा से सृजनात्मक शक्ति और संतान सुख मिलता है।

(Disclaimer) – यह लेख धार्मिक मान्यताओं, पुराणों, ज्योतिषीय तथ्यों और लोक कथाओं पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी केवल सामान्य संदर्भ और पाठकों की जानकारी के लिए प्रस्तुत की गई है। Sonprabhat News किसी भी धार्मिक, आध्यात्मिक या पौराणिक दावे की पुष्टि नहीं करता है और न ही किसी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा देता है !

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