सोनप्रभात डेस्क | हेल्थ टिप्स
Health Tips : दुनियाभर में तेजी से बदलती स्वास्थ्य समस्याओं के बीच ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध में यह सामने आया है कि हर 3,000 में से एक व्यक्ति के शरीर में ऐसा दुर्लभ जीन (FLCN) होता है, जिससे उसे फेफड़े फटने (न्यूमोथोरैक्स) का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यही नहीं, इस जीन से एक गंभीर आनुवंशिक बीमारी बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम का भी संबंध है, जो किडनी कैंसर तक की आशंका बढ़ा देता है।
क्या है न्यूमोथोरैक्स और बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम?
न्यूमोथोरैक्स यानी फेफड़े का पंक्चर तब होता है जब फेफड़ों से हवा लीक हो जाती है, जिससे फेफड़ा सिकुड़ जाता है और व्यक्ति को तेज दर्द व सांस लेने में तकलीफ होती है।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों में FLCN जीन में बदलाव होता है, उन्हें बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम होने का खतरा होता है। यह एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है, जिसमें फेफड़ों में गांठें बनती हैं, त्वचा पर छोटे-छोटे ट्यूमर उभरते हैं और व्यक्ति को किडनी कैंसर होने की आशंका भी बढ़ जाती है।
शोध में क्या सामने आया?
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मार्सिनियाक और उनकी टीम ने 5.5 लाख से ज्यादा लोगों पर अध्ययन किया। इसमें उन्होंने पाया कि—
जिन लोगों में बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम था, उनमें फेफड़ा पंक्चर होने का जोखिम 37% तक था।
सिर्फ FLCN जीन में गड़बड़ी वाले, लेकिन बीमारी से मुक्त लोगों में भी यह खतरा 28% पाया गया।
किडनी कैंसर का खतरा इस सिंड्रोम से ग्रसित लोगों में 32% तक देखा गया, जबकि सिर्फ जीन वाले लोगों में यह मात्र 1% था।
कौन हो सकता है ज़्यादा प्रभावित?
शोध के अनुसार, यह समस्या लंबे और दुबले-पतले किशोर या युवा पुरुषों में अधिक देखने को मिलती है।
प्रोफेसर मार्सिनियाक का कहना है कि अगर किसी को यह जीन है, तो उसके परिवार के अन्य सदस्यों में भी किडनी कैंसर का खतरा हो सकता है। ऐसे मामलों में समय से जांच और इलाज ज़रूरी हो जाता है।
इलाज और पहचान
न्यूमोथोरैक्स के अधिकतर मामलों में:
यह समस्या अपने आप ठीक हो जाती है।
डॉक्टर फेफड़ों से हवा या तरल निकालकर उपचार करते हैं।
अगर रोगी की आयु या लक्षण सामान्य से अलग हैं, तो एमआरआई जांच के जरिए फेफड़ों में मौजूद सिस्ट की पहचान की जाती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को समय रहते बर्ट-हॉग-डुबे सिंड्रोम की पहचान हो जाती है, तो किडनी कैंसर के लक्षणों को 10-20 साल पहले ही पकड़ कर रोका जा सकता है।
विशेषज्ञ की राय
प्रोफेसर मार्सिनियाक का कहना है,
“हमें यह जानकर हैरानी हुई कि जिन लोगों में सिर्फ जीन था लेकिन बीमारी नहीं थी, उनमें किडनी कैंसर का खतरा बेहद कम था। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बीमारी सिर्फ जीन की वजह से नहीं, बल्कि अन्य कारणों से भी विकसित होती है।”

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