Sonprabhat Digital Desk
Indus Waters Treaty: : भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty – IWT) एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो दोनों देशों के बीच सिंधु नदी तंत्र के जल संसाधनों के बंटवारे को नियंत्रित करता है। 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान द्वारा कराची में हस्ताक्षरित यह समझौता जल बंटवारे के साथ-साथ दोनों देशों के बीच सहयोग और शांति का प्रतीक रहा है। हाल के तनावों, विशेष रूप से 23 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा समझौते को निलंबित करने की घोषणा ने इसे फिर से वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया है। इस लेख में हम समझौते के उद्देश्य, प्रावधानों, महत्व, विवादों, निलंबन के प्रभाव और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं।

सिंधु जल समझौता क्या है?
सिंधु जल समझौता एक जल-वितरण संधि है, जो सिंधु नदी और इसकी पांच सहायक नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम, और चिनाब) के पानी के उपयोग को भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रित करती है। 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद सिंधु नदी बेसिन का एक हिस्सा भारत में (मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, और राजस्थान) और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान में (पंजाब और सिंध प्रांत) चला गया। इससे पानी के बंटवारे को लेकर तनाव उत्पन्न हुआ, क्योंकि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं और कृषि इस नदी तंत्र पर निर्भर थीं।

विश्व बैंक की मध्यस्थता में नौ साल की लंबी बातचीत के बाद 1960 में यह समझौता अस्तित्व में आया। यह संधि न केवल जल संसाधनों के उपयोग को व्यवस्थित करती है, बल्कि दोनों देशों के बीच एक सहयोगात्मक ढांचा भी प्रदान करती है। समझौते की खास बात यह है कि यह चार युद्धों और कई तनावपूर्ण दौरों के बावजूद 65 वर्षों तक प्रभावी रहा।
समझौते के प्रमुख प्रावधान
सिंधु जल समझौता एक विस्तृत और तकनीकी दस्तावेज है, जिसमें जल बंटवारे और उपयोग के लिए स्पष्ट नियम निर्धारित किए गए हैं। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. नदियों का बंटवारा
पूर्वी नदियां:
रावी, ब्यास, और सतलुज नदियों का पानी पूरी तरह भारत को आवंटित किया गया।
इन नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 41 अरब घन मीटर (33 मिलियन एकड़-फीट) है, जिसे भारत बिना किसी प्रतिबंध के सिंचाई, बिजली उत्पादन, और अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल कर सकता है।
पश्चिमी नदियां:
सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियों का पानी मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित किया गया।
इनका औसत वार्षिक प्रवाह 99 अरब घन मीटर (80 मिलियन एकड़-फीट) है।
भारत इन नदियों के पानी का सीमित गैर-उपभोगी उपयोग (जैसे जलविद्युत उत्पादन, नेविगेशन, मत्स्य पालन) कर सकता है, बशर्ते इससे पाकिस्तान के जल प्रवाह पर असर न पड़े।
कुल बंटवारा: सिंधु नदी तंत्र के कुल जल का 30% भारत को और 70% पाकिस्तान को मिलता है।

2. भारत की जिम्मेदारियां
भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर कोई भी परियोजना (जैसे बांध, बैराज, या जलविद्युत संयंत्र) शुरू करने से पहले पाकिस्तान को सूचित करना अनिवार्य है।
इन परियोजनाओं को रन-ऑफ-द-रिवर (Run-of-the-River) तकनीक पर आधारित होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि पानी को रोककर भंडारण नहीं किया जा सकता। इससे पाकिस्तान को मिलने वाला जल प्रवाह प्रभावित नहीं होता।
भारत को इन नदियों पर सीमित भंडारण (कुल 3.6 मिलियन एकड़-फीट तक) की अनुमति है, जो मुख्य रूप से बाढ़ नियंत्रण और तकनीकी जरूरतों के लिए है।

3. स्थायी सिंधु आयोग
समझौते के तहत एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) की स्थापना की गई।
इसमें भारत और पाकिस्तान के एक-एक आयुक्त शामिल हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं।
आयोग का कार्य:
जल उपयोग से संबंधित डेटा और सूचनाओं का आदान-प्रदान करना।
समझौते के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
छोटे-मोटे विवादों को सुलझाना।
आयोग हर साल कम से कम एक बार बैठक करता है और दोनों देशों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण मंच है।
4. विवाद समाधान तंत्र
समझौते में विवादों को सुलझाने के लिए एक तीन-स्तरीय प्रक्रिया निर्धारित की गई है:
स्थायी सिंधु आयोग के माध्यम से बातचीत: छोटे तकनीकी विवादों को आयोग के स्तर पर सुलझाया जाता है।
निष्पक्ष विशेषज्ञ (Neutral Expert): यदि आयोग किसी मुद्दे पर सहमत नहीं हो पाता, तो विश्व बैंक द्वारा एक निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त किया जाता है। उदाहरण: 2005 में बागलिहार बांध विवाद में निष्पक्ष विशेषज्ञ ने मध्यस्थता की।
मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration): गंभीर विवादों के लिए विश्व बैंक की मदद से एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय का गठन किया जाता है। उदाहरण: किशनगंगा परियोजना विवाद को 2013 में इस न्यायालय ने सुलझाया।
समझौते का महत्व
सिंधु जल समझौता विश्व के सबसे सफल और टिकाऊ जल-बंटवारा समझौतों में से एक है। इसके महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:
1. स्थायित्व और लचीलापन
यह समझौता 65 वर्षों से प्रभावी है, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच चार युद्ध (1947-48, 1965, 1971, 1999) और कई तनावपूर्ण दौर (जैसे 2001 संसद हमला, 2008 मुंबई हमला, 2016 उरी हमला) हो चुके हैं।
तनाव के समय भी दोनों देशों ने समझौते का पालन किया, जो इसे एक मजबूत और विश्वसनीय संधि बनाता है।
2. कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए महत्व
पाकिस्तान: सिंधु नदी तंत्र पाकिस्तान की 80% कृषि के लिए जीवन रेखा है। पंजाब और सिंध प्रांतों में सिंचाई के लिए मंगल और तरबेला बांध जैसे ढांचे इस पानी पर निर्भर हैं।
भारत: पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत के पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, भाखड़ा-नंगल बांध सतलुज नदी पर बना है और भारत की हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं इस नदी तंत्र पर निर्भर हैं, जिससे समझौता दोनों के लिए अपरिहार्य है।
3. विश्वास-निर्माण और सहयोग
भारत-पाकिस्तान के बीच सहयोग के सीमित उदाहरणों में से एक यह समझौता है।
स्थायी सिंधु आयोग नियमित संवाद का मंच प्रदान करता है, जो तनावपूर्ण संबंधों के बीच भी दोनों देशों को एक-दूसरे से जोड़े रखता है।
विश्व बैंक की मध्यस्थता ने इसे एक तटस्थ और निष्पक्ष ढांचा प्रदान किया है।
हाल के विवाद और निलंबन
हालांकि सिंधु जल समझौता दशकों तक स्थिर रहा, लेकिन कुछ मुद्दों ने इसे समय-समय पर चुनौती दी है। हाल के वर्षों में निम्नलिखित विवाद प्रमुख रहे हैं:
1. जलविद्युत परियोजनाओं पर असहमति
भारत ने पश्चिमी नदियों पर कई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू कीं, जैसे:
किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट, झेलम नदी): 2013 में मध्यस्थता न्यायालय ने भारत के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन कुछ शर्तों के साथ।
रतले जलविद्युत परियोजना (850 मेगावाट, चिनाब नदी): पाकिस्तान ने इसका विरोध किया, दावा करते हुए कि यह समझौते का उल्लंघन है।
पाकिस्तान का तर्क है कि ये परियोजनाएं उसके जल प्रवाह को प्रभावित करती हैं, जबकि भारत का कहना है कि ये रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाएं हैं, जो समझौते के अनुरूप हैं।
इन विवादों ने स्थायी सिंधु आयोग और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को बार-बार सक्रिय किया है।
2. 2025 पहलगाम आतंकी हमला और निलंबन
23 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद को जिम्मेदार ठहराया।
इसके जवाब में, भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने की घोषणा की। विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने कहा कि निलंबन तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को पूरी तरह रोक नहीं लेता।
यह पहली बार है जब भारत ने समझौते को निलंबित करने का कदम उठाया, जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है।
निलंबन का प्रभाव
भारत के निलंबन के फैसले ने समझौते के भविष्य पर कई सवाल खड़े किए हैं। इसके प्रभावों को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. तात्कालिक प्रभाव
भारत के पास वर्तमान में पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी को रोकने या मोड़ने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है।
उदाहरण के लिए, बड़े पैमाने पर भंडारण बांध या नहर प्रणालियां बनाने में कई साल और अरबों रुपये की लागत लगेगी।
इसलिए, अल्पकाल में पाकिस्तान को मिलने वाले जल प्रवाह पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
2. दीर्घकालिक जोखिम
यदि भारत भविष्य में जल भंडारण बांध या नहर प्रणालियां विकसित करता है, तो यह पाकिस्तान के जल प्रवाह को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
पाकिस्तान की जल भंडारण क्षमता पहले से ही सीमित है। उसके दो प्रमुख बांध—मंगल और तरबेला—कुल 14.4 मिलियन एकड़-फीट की क्षमता रखते हैं, जो केवल 30 दिन की आपूर्ति के बराबर है।
जल प्रवाह में कमी से पाकिस्तान की कृषि (विशेष रूप से गेहूं और चावल की खेती) और अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है।
3. पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने निलंबन को युद्ध की कार्रवाई करार दिया और कहा कि पानी रोकना या मोड़ना पूर्ण बल के साथ जवाब दिया जाएगा।
पाकिस्तान ने विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाने की धमकी दी है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह तनाव दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव को बढ़ा सकता है।
भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां
सिंधुSculpture जल समझौता दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन वर्तमान तनाव इसे कमजोर कर सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में निम्नलिखित कारक इस समझौते को प्रभावित कर सकते हैं:
1. जलवायु परिवर्तन
हिमालयी हिमनदों का पिघलना: सिंधु नदी तंत्र का अधिकांश पानी हिमालयी हिमनदों से आता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से पिघल रहे हैं।
इससे जल प्रवाह में अनियमितता (बाढ़ या सूखा) बढ़ सकती है, जिसके लिए समझौते में संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।
दोनों देशों को जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाना होगा, जैसे संयुक्त जलवायु अनुसंधान और डेटा साझा करना।
2. राजनीतिक तनाव
कश्मीर विवाद और आतंकवाद जैसे मुद्दे समझौते को और जटिल बना सकते हैं।
भारत का निलंबन का फैसला राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकता है, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव दोनों देशों के लिए हानिकारक हो सकता है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि दोनों देशों को तनाव कम करने के लिए बैक-चैनल कूटनीति का सहारा लेना चाहिए।
3. सहयोग की जरूरत
जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन और जलवायु जोखिमों से निपटने के लिए दोनों देशों को सहयोग बढ़ाना होगा।
विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन इस प्रक्रिया में मध्यस्थता कर सकते हैं।
समझौते में संशोधन या अद्यतन (जैसे जलवायु परिवर्तन को शामिल करना) भविष्य में आवश्यक हो सकता है।

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