Sonprabhat Digital Desk
महाकुंभ 2025 : भारत का महाकुंभ मेला, जो विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। हर 12 वर्षों में प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे चार पवित्र स्थलों पर आयोजित होने वाला यह आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है, जो गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। श्रद्धालु इस पावन अवसर पर संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।
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महाकुंभ: पौराणिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
महाकुंभ का आयोजन समुद्र मंथन से जुड़ी एक पौराणिक कथा पर आधारित है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया था। अमृत कलश को लेकर उत्पन्न संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—पर गिरीं। इन्हीं स्थलों पर महाकुंभ का आयोजन होता है।
प्राचीन ग्रंथों जैसे कि विष्णु पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, कुंभ का सबसे प्राचीन उल्लेख 2500 साल पहले का है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में नदियों के किनारे बड़े धार्मिक समारोहों का वर्णन किया है। इसके बाद सम्राट हर्षवर्धन के काल (606-647 ईस्वी) में कुंभ को व्यापक रूप से व्यवस्थित किया गया। सम्राट हर्षवर्धन ने अपनी सारी संपत्ति कुंभ के दौरान दान कर दी थी।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी पुस्तक ‘सी-यू-की’ में प्रयागराज के कुंभ मेले का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा कि देशभर के शासक संगम पर एकत्र होते थे और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते थे।
मुगल काल और कुंभ
मुगल सम्राट अकबर ने भी प्रयागराज की धार्मिक महत्ता को समझा। अकबरनामा में इसका उल्लेख ‘पयाग’ के रूप में हुआ है। अकबर ने संगम क्षेत्र में एक किले का निर्माण करवाया, जो आज भी प्रयागराज की ऐतिहासिक धरोहर है। यह किला संगम के पवित्र स्थान को संरक्षित करने के लिए बनाया गया था।
महाकुंभ 2025 के मुख्य स्नान पर्व
महाकुंभ 2025 के दौरान, विभिन्न प्रमुख स्नान पर्वों का आयोजन किया जाएगा, जिनमें श्रद्धालु संगम में स्नान करेंगे और आध्यात्मिक शुद्धि की अनुभूति करेंगे।
1. पौष पूर्णिमा (13 जनवरी 2025)
पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और सूर्य-चंद्र की पूजा का विशेष महत्व है। यह दिन कल्पवास का आरंभ करता है, जहां श्रद्धालु संगम तट पर एक महीने तक तपस्या और साधना करते हैं।
2. मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025)
मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन तिल, गुड़ और खिचड़ी का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति को लेकर विशेष रूप से उत्तर भारत में अनेक धार्मिक आयोजन होते हैं।
3. मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025)
मौनी अमावस्या का दिन कुंभ मेला का सबसे बड़ा स्नान पर्व होता है। इस दिन श्रद्धालु मौन व्रत रखते हुए संगम में स्नान करते हैं, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।
4. वसंत पंचमी (3 फरवरी 2025)
वसंत पंचमी का पर्व देवी सरस्वती की पूजा का दिन है, जो ज्ञान और विद्या की देवी मानी जाती हैं। इस दिन श्रद्धालु पीले वस्त्र पहनकर संगम में स्नान करते हैं और ज्ञान की प्राप्ति की कामना करते हैं।
5. माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025)
माघी पूर्णिमा के दिन देवताओं के पृथ्वी पर आगमन की मान्यता है। यह कल्पवास की पूर्णता का दिन भी होता है, और इस दिन संगम स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
6. महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025)
महाशिवरात्रि का पर्व महाकुंभ के अंतिम स्नान पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यह पर्व कुंभ मेले का समापन करता है, जब श्रद्धालु संगम में स्नान करके भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
प्रयागराज के प्रमुख घाट
1. रसूलाबाद घाट : यह घाट स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अंतिम संस्कार के लिए प्रसिद्ध है। यहां श्रद्धालु स्नान और ध्यान करते हैं।
2. दशाश्वमेध घाट : प्रयागराज में स्थित यह घाट भगवान ब्रह्मा के दस अश्वमेध यज्ञों का साक्षी है। सावन में यह शिवभक्तों के लिए प्रमुख आकर्षण है।
3. किला घाट : अकबर के किले के पास स्थित यह घाट शांत और कम भीड़भाड़ वाला है।
4. रामघाट : संगम क्षेत्र में स्थित रामघाट श्रद्धालुओं के लिए स्नान का प्रमुख स्थान है।
5. संगम घाट : गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल पर स्थित यह घाट कुंभ मेले का केंद्र बिंदु है।
6. अरैल घाट : नैनी क्षेत्र में स्थित यह घाट प्राकृतिक सुंदरता और सोमेश्वर महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
7. सरस्वती घाट : अकबर के किले के पास यमुना नदी के तट पर स्थित यह घाट नौकायन और स्नान के लिए आकर्षण का केंद्र है।
8. बलुआ घाट : यह यमुना नदी के तट पर स्थित है और अपनी पक्की सीढ़ियों और इस्कॉन मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कार्तिक मास में यहां मेले का आयोजन होता है।
महाकुंभ 2025 का वैश्विक महत्व
महाकुंभ 2025 न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और एकता का प्रतीक भी है। यह आयोजन दुनियाभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जिससे भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को विश्व मंच पर प्रदर्शित करने का अवसर मिलता है।
महाकुंभ का यह महापर्व आस्था, परंपरा और संस्कृति का ऐसा संगम है, जो हर श्रद्धालु को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
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महाकुंभ 2025 में आपका स्वागत है!
इस पावन अवसर पर, जब आस्था, परंपरा और संस्कृति का मिलन होता है, आइए, इस महापर्व का हिस्सा बनें और आध्यात्मिकता के इस उत्सव को अनुभव करें।
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