January 21, 2025 7:04 AM

Menu

ONE NATION, ONE ELECTION: एक देश, एक चुनाव: विधेयक लोकसभा में पेश से पहले अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया

एक देश, एक चुनाव" (ONE NATION, ONE ELECTION)  से जुड़ा विधेयक लोकसभा में पेश से पहले अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया

Digital Desk

ONE NATION, ONE ELECTIOM: “एक देश, एक चुनाव”  से जुड़ा विधेयक आज मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इस महत्वपूर्ण विधेयक को सदन के पटल पर रखेंगे।

इस विधेयक का उद्देश्य देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की दिशा में संवैधानिक और कानूनी ढांचे को मजबूत करना है। सरकार का मानना है कि इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी।

हालांकि, इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के बीच मतभेद बने हुए हैं। कुछ दल इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रभाव डालने वाला मानते हैं, जबकि सरकार इसे विकास और सुशासन का कदम बता रही है।

अब देखना यह है कि यह विधेयक सदन में किस प्रकार की बहस और चर्चा का विषय बनता है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपने सोशल मीडिया एक्स (Twitter) पर कहीं कुछ महत्वपूर्ण बातें

  •  लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है। लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है। ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता। जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है। व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है।
  •  ‘एक देश-एक चुनाव’ का फ़ैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा। ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा। इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व ख़त्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल मे फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुँच ही नहीं है।
  • हमारे देश में जब राज्य बनाए गये तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई व उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को ‘राज्य’ की एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाए। इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे-से-ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं। इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे। ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है।
  • एक तरह से ये संविधान को ख़त्म करने का एक और षड्यंत्र भी है।
  • इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी। कल को ये भाजपावाले राज्यसभा को भी भंग करने की माँग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे ‘एक देश-एक सभा’ । जबकि सच्चाई ये है कि हमारे यहाँ राज्य को मूल मानते हुए ही ‘राज्यसभा’ की निरंतरता का सांविधानिक प्रावधान है। लोकसभा तो पाँच वर्ष तक की समयावधि के लिए होती है।
  • ऐसा होने से लोकतंत्र की जगह एकतंत्रीय व्यवस्था जन्म लेगी, जिससे देश तानाशाही की ओर जाएगा। दिखावटी चुनाव केवल सत्ता पाने का ज़रिया बनकर रह जाएगा।
  • अगर भाजपाइयों को लगता है कि ‘ONE NATION, ONE ELECTION’ अच्छी बात है तो फिर देर किस बात की, केंद्र व सभी राज्यों की सरकारें भंग करके तुरंत चुनाव कराइए। दरअसल ये भी ‘नारी शक्ति वंदन’ की तरह एक जुमला ही है।

https://x.com/yadavakhilesh/status/1868881871876374744

  • ये जुमला भाजपा की दो विरोधाभासी बातों से बना है। जिसमें कथनी-करनी का भेद है। भाजपावाले एक तरफ़ ‘एक देश’ की बात तो करते हैं, पर देश की एकता को खंडित कर रहे हैं, बिना एकता के ‘एक देश’ कहना व्यर्थ है; दूसरी तरफ़ ये जब ‘एक चुनाव’ की बात करते हैं तो उसमें भी विरोधाभास है, दरअसल ये ‘एक को चुनने’ की बात करते हैं। जो लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ़ है।
  • क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ का मुद्दा महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, बीमारी से बड़ा मुद्दा है जो भाजपाई इसे उठा रहे हैं। दरअसल भाजपा इन बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रही है। जनता सब समझ रही है।
  •  सच तो ये है कि BJP को सोते-जागते सिर्फ़ चुनाव दिखाई देता है, और ये सोचते हैं कि किस तिकड़म से परिणाम इनके पक्ष में दिखाई दे। ये हर बार जुगाड़ से चुनाव जीतते हैं। इसीलिए चाहते हैं कि एक साथ जुगाड़ करें और सत्ता में बने रहें।
  •  अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार?
  •  ⁠भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?
  •  ⁠किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतज़ार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?
  •  ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है?
  •  ⁠कहीं ‘एक देश-एक चुनाव’ की ये योजना चुनावों का निजीकरण करके परिणाम बदलने की साज़िश तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य ज़रूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं।
  •  जनता का सुझाव है कि भाजपा सबसे पहले अपनी पार्टी के अंदर ज़िले-नगर, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के चुनावों को एक साथ करके दिखाए फिर पूरे देश की बात करे। आशा है देश-प्रदेश की जागरुक जनता, पत्रकार बंधु और लोकतंत्र के पक्षधर सभी दलों के कार्यकर्ता, पदाधिकारी व नेतागण ये बातें स्थानीय स्तर पर अपनी-अपनी भाषा-बोली में हर गाँव, गली, मोहल्लों में जाकर आम जनता को बताएंगे और उन्हें समझाएंगे कि ‘एक देश, एक चुनाव’ किस तरह पहले तानाशाही को जन्म देगा और फिर उनके हक़ और अधिकार को मारेगा, आरक्षण को ख़त्म करेगा और फिर एक दिन संविधान को भी और आख़िर में चुनाव को भी।

 

 

Ad- Shivam Medical

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On