सोनप्रभात डेस्क, आशीष गुप्ता (सोनभद्र)
विंध्य क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और परंपरागत चिकित्सा प्रणाली को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल की गई है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के आयुर्वेद विभाग और महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय की संयुक्त टीम जल्द ही सोनभद्र और मिर्जापुर के जंगलों में मौजूद जड़ी-बूटियों और ग्रामीण वैद्यों की उपचार पद्धतियों का गहन अध्ययन करेगी। इस पहल से विंध्य क्षेत्र की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिलने की उम्मीद है।
राष्ट्रीय कार्यशाला में हुई बड़ी घोषणा
इस शोध परियोजना की औपचारिक घोषणा हाल ही में पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर स्थित विद्यासागर विश्वविद्यालय में आयोजित एक राष्ट्रीय स्तरीय कार्यशाला के दौरान की गई। कार्यशाला का विषय था — “भारतीय ज्ञान परंपरा और परंपरागत उपचार पद्धतियों की प्रामाणिकता व उपयोगिता”।

BHU के आयुर्वेदिक विभाग के प्रो. किशोर पटवर्धन और अध्ययन टीम की संयोजिका प्रो. बीना सेंगर ने विस्तृत जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि यह शोध परियोजना भारतीय पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।
लिलासी सोनभद्र के कवि, समाजसेवी वैद्य डॉ. लखन राम जंगली का सराहनीय योगदान
परंपरागत चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य कर रहे सोनभद्र के लीलासी गांव के प्रसिद्ध वैद्य डॉ. लखन राम जंगली ने कार्यशाला में उपस्थित होकर भारतीय ज्ञान परंपरा में लोक चिकित्सा की प्रामाणिकता और उपयोगिता को विस्तार से बताया। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ग्रामीण वैद्यों के पास व्यावहारिक अनुभव है, जिसे संरक्षण और मान्यता की जरूरत है।
पर्यावरण कार्यकर्ता ने जताई चिंता
पर्यावरण कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा ने ग्रामीण वैद्य परंपरा के लुप्त होने पर चिंता जताते हुए कहा कि
“सोनभद्र के घने जंगलों में आज भी लाखों औषधीय पौधे मौजूद हैं, लेकिन वे शोध और दस्तावेजीकरण से वंचित हैं। अब समय है कि हम इस परंपरा को फिर से समझें और दुनिया को इसका महत्व बताएं।”
शिक्षाविदों ने की सराहना
विद्यासागर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीपक कुमार कर ने इस विषय को भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला केवल ज्ञान के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी समाज को लाभ पहुंचा सकती है।
प्रो. अरिंदो गुप्ता (डीन, आर्ट्स एंड कॉमर्स) ने कहा कि
“इस विषय को ढूंढ़कर निकालना और उस पर रिसर्च करना अपने आप में सराहनीय है। आज के समय में, जब मनुष्य आधुनिक जीवन की जटिलताओं और बीमारियों से घिरा है, ऐसे में पारंपरिक चिकित्सा नई उम्मीद बन सकती है।
सत्रों की प्रमुख बातें
प्रथम सत्र में प्रो. सुमिता बसु मजूमदार ने ट्रेडिशनल हीलिंग में मौखिक परंपरा की भूमिका और सीमाओं पर चर्चा की।प्रो. देवजानी दास ने मेदनीपुर और पुरुलिया क्षेत्र के पारंपरिक हिलर (शोखा, ओझा, गुन्नी) के अनुभव साझा किए।द्वितीय सत्र में डॉ. मानिक कुमार ने इंडियन ट्रेडिशनल नॉलेज सिस्टम और वर्तमान आयुर्वेद संस्थानों में उसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। प्रो. रीचा चोपड़ा ने उपनिषद, सनातन दर्शन और पतंजलि योगसूत्रों के आलोक में ट्रेडिशनल हीलिंग को अध्यात्म से जोड़ कर प्रस्तुत किया।
परियोजना का उद्देश्य और भविष्य की दिशा
इस परियोजना का मूल उद्देश्य विंध्य क्षेत्र की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली, लोक वैद्यों के मौखिक ज्ञान और जड़ी-बूटी आधारित उपचार विधियों को वैज्ञानिक रूप से दस्तावेज करना है। इससे न केवल पारंपरिक वैद्यों को सम्मान मिलेगा, बल्कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में नए शोध का मार्ग भी प्रशस्त होगा।इस शोध परियोजना के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. सुदीन बाग ने अपने स्वागत वक्तव्य में सभी प्रतिभागियों और टीम के योगदान की सराहना की। कार्यक्रम का समापन डॉ. दीपा बनर्जी और प्रो. तारकनाथ साहू के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
विशेष टिप्पणी:
यह परियोजना सिर्फ सोनभद्र और मिर्जापुर जैसे पिछड़े समझे जाने वाले क्षेत्रों की पहचान नहीं बढ़ाएगी, बल्कि भारतीय चिकित्सा पद्धति को विश्वपटल पर स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाएगी।

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