April 17, 2025 2:47 AM

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Sonbhadra News : जंगलों में आग और अवैध कटान की रोकथाम के लिए जारी हो हेल्पलाइन नंबर – चेयरमैन कमलेश मोहन

Sonbhadra News | Sonprabhat | Jitendra Kumar Chandravanshi

दुद्धी (सोनभद्र) : वन औषधियों और जैव विविधता से भरपूर दुद्धी तहसील का क्षेत्र गर्मियों में जंगलों में आग और अवैध कटान की लगातार घटनाओं से जूझ रहा है। इन जंगलों में महुआ के फूलों की खुशबू से जीवन तो महक रहा है, लेकिन आगजनी और पेड़ों की बेतरतीब कटाई ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है।

प्राकृतिक संपदा पर संकट
रेणुकूट वन प्रभाग अंतर्गत दुद्धी, म्योरपुर, बभनी जैसे क्षेत्रों में अक्सर आग लगने की खबरें आती हैं। कई बार ये घटनाएं जानबूझकर कराई जाती हैं तो कभी लापरवाही के कारण घटित होती हैं। इसके अलावा, जंगलों से अवैध रूप से लकड़ी काटकर खुलेआम बेचा जा रहा है, जिससे वनों का संतुलन बिगड़ रहा है।

आपातकालीन सेवाओं की तुलना में वन विभाग पीछे
जहां एक ओर आम दुर्घटनाओं के लिए डायल 108, 102, 112 जैसी हेल्पलाइन सेवाएं त्वरित राहत प्रदान करती हैं, वहीं जंगलों में लगी आग या पेड़ों की अवैध कटाई के लिए अब तक कोई विशेष और त्वरित व्यवस्था नहीं है। यह स्थिति पर्यावरण सुरक्षा के प्रति गंभीर लापरवाही को दर्शाती है।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों की चिंता और मांग
नगर पंचायत दुद्धी के अध्यक्ष कमलेश मोहन और स्वच्छता मिशन ब्रांड एंबेसडर जितेन्द्र कुमार चंद्रवंशी ने इस समस्या पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने जिलाधिकारी सोनभद्र और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से अनुरोध किया है कि वन क्षेत्र के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाए, जिसे अग्निशमन विभाग से जोड़ा जाए, ताकि आगजनी और अवैध कटाई जैसी घटनाओं पर तुरंत काबू पाया जा सके।

जंगलों की रक्षा के लिए ठोस पहल जरूरी
कमलेश मोहन ने कहा कि आजादी के 78 वर्षों के बाद भी जंगलों को सुरक्षित रखने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं बन पाया है। हर साल आग की घटनाएं दोहराई जाती हैं, जिससे जीव-जंतुओं का जीवन संकट में पड़ जाता है। कई मासूम जानवर और पक्षी इन घटनाओं में काल के गाल में समा जाते हैं।

समर्पित हेल्पलाइन के माध्यम से जनभागीदारी
उन्होंने यह भी कहा कि एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर सिर्फ त्वरित सूचना देने का माध्यम न होकर, जागरूकता फैलाने का भी जरिया होना चाहिए। इसके जरिए आम लोगों को भी जंगलों की सुरक्षा में भागीदार बनाया जा सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण को जन आंदोलन का रूप दिया जा सके।

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