Sonbhadra News | सोनप्रभात | वेदव्यास सिंह मौर्य
सोनभद्र : जिले के नगवां विकासखंड में पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। ग्राम पंचायतों में हो रहे वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत जब मुख्यमंत्री पोर्टल पर की गई, तो जिस व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे, उसी को जांच अधिकारी बना दिया गया। यह फैसला सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) द्वारा लिया गया, जो कि न केवल शासन के “जीरो टॉलरेंस” सिद्धांत के विपरीत है, बल्कि जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी प्रश्न खड़े करता है।
मुख्यमंत्री पोर्टल को बना दिया मज़ाक, फर्जी आख्या बनाकर मामले को किया गया रफा-दफा
ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत सचिव पर आरोप लगाया था कि वह गांव की जगह ब्लॉक कार्यालय में बैठकर कागजी खानापूर्ति करता है और विकास कार्यों में भारी घोटाले कर रहा है। लेकिन जब इस शिकायत की जांच सहायक विकास अधिकारी को सौंपी गई, तो उन्होंने जांच का जिम्मा उसी सचिव को सौंप दिया, जिसकी शिकायत की गई थी।

सूत्रों के मुताबिक, यह कोई पहली बार नहीं है जब नगवां ब्लॉक में ऐसी लापरवाही सामने आई हो। यहां लंबे समय से शिकायतों की फाइलें केवल खानापूर्ति बनकर रह जाती हैं। एडीओ पंचायत द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टें भी प्रायः फर्जी पाई गई हैं, जिनका उद्देश्य केवल मामले को ठंडे बस्ते में डालना होता है।
मनरेगा घोटाले में सीबीआई जांच के आरोपी हैं एडीओ पंचायत, जमानत पर चल रहे हैं
सबसे गंभीर और चिंताजनक पहलू यह है कि नगवां विकासखंड के एडीओ पंचायत का नाम पूर्व में बहुचर्चित मनरेगा घोटाले में सामने आ चुका है। उनके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है, और वर्तमान में वे न्यायालय से जमानत पर चल रहे हैं। इसके बावजूद शासन द्वारा उन्हें ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों की जांच का जिम्मा सौंपा जाना, न केवल शासन की “जीरो टॉलरेंस” नीति की धज्जियां उड़ाता है, बल्कि प्रशासन की कार्यप्रणाली और मंशा पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
शिकायतकर्ता से ही साक्ष्य की मांग!
एडीओ पंचायत की कार्यशैली पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि वे शिकायतकर्ता से ही भ्रष्टाचार के प्रमाण मांगते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि ग्राम पंचायतों के अभिलेख, बिल-वाउचर, मस्टर रोल आदि सभी ब्लॉक कार्यालय में उपलब्ध होते हैं। इसके बावजूद शिकायतकर्ता से साक्ष्य मांगना जांच से बचने का एक तरीका प्रतीत होता है।
बड़े अधिकारी भी बना रहे दूरी, जिम्मेदारी टालने की नीति हावी
जैसे ही किसी पंचायत की शिकायत की जाती है, उच्च अधिकारी स्वयं जांच करने से बचते हैं और सारा दायित्व सहायक विकास अधिकारी पर डाल देते हैं। इससे एडीओ पंचायत को अपनी सुविधा अनुसार जांच की दिशा और निष्कर्ष तय करने का अवसर मिल जाता है। यही कारण है कि भ्रष्ट प्रधानों और सचिवों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाती।
जिला पंचायत राज अधिकारी से संपर्क असफल, जनता में आक्रोश
इस मामले पर जब जिला पंचायत राज अधिकारी से बात करने की कोशिश की गई तो उनका फोन रिसीव नहीं हुआ। इस चुप्पी ने जनता के आक्रोश को और बढ़ा दिया है। अब क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों द्वारा आंदोलन की तैयारी की जा रही है।
जल्द होगा बड़ा आंदोलन, भ्रष्ट अधिकारियों की कुंडली खंगालने में जुटी जनता
क्षेत्रीय नागरिकों का कहना है कि यदि जल्द ही नगवां ब्लॉक में एडीओ पंचायत की भूमिका की निष्पक्ष जांच नहीं कराई गई, तो जिलाधिकारी कार्यालय पर बड़ा धरना-प्रदर्शन होगा। भ्रष्टाचार में लिप्त सचिवों और प्रधानों की कुंडली तैयार की जा रही है और उनके खिलाफ प्रमाण जुटाए जा रहे हैं।

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