Sonprabhat News/Report : U. Gupta
वाराणसी। काशी के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल, जो 80 करोड़ की संपत्ति के मालिक और 400 से अधिक पुस्तकों के रचयिता थे, का शनिवार सुबह निधन हो गया। यह घटना उनकी दुखद पारिवारिक स्थिति और समाज के नैतिक मूल्यों पर गहरा प्रश्नचिन्ह लगाती है।
खंडेलवाल ने अपने जीवन में साहित्य और लेखन को समर्पित किया। एक बार उन्होंने कहा था, “जब तक सांसे चलेंगी, तब तक कलम चलती रहेगी।” लेकिन उनके अंतिम समय में वह अकेले थे। बेटे-बेटी, जो एक प्रतिष्ठित व्यवसायी और सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं, ने उन्हें पहले ही घर से बेदखल कर दिया था। इसके बाद श्रीनाथ खंडेलवाल ने वाराणसी के काशी कुष्ठ सेवा संघ एवं वृद्धाश्रम में शरण ली, जहां वह 17 मार्च 2024 से रह रहे थे।
अस्पताल में ली अंतिम सांस
25 दिसंबर 2024 को उन्हें सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ और किडनी की समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया। शनिवार सुबह 8 बजे ‘दीर्घायु अस्पताल’ में उन्होंने अंतिम सांस ली। लेकिन खबर मिलने के बावजूद उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं पहुंचा।
परिवार की बेरुखी
अस्पताल के केयर टेकर रमेशचंद्र श्रीवास्तव ने उनके बेटे और बेटी को सूचना दी। बेटे ने विदेश में होने का बहाना कर आने से मना कर दिया, जबकि बेटी ने फोन और मैसेज का जवाब नहीं दिया।
अमन कबीर ने निभाई जिम्मेदारी
खंडेलवाल की मृत्यु के बाद उनके करीबी अमन कबीर ने न केवल उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था की, बल्कि उन्हें मुखाग्नि भी दी और पिंडदान भी किया। अमन ने बताया कि उन्होंने कमिश्नर कौशल राज शर्मा को घटना की जानकारी दी थी।
संपत्ति से बेदखल और अकेलेपन की कहानी
80 करोड़ की संपत्ति के मालिक होने के बावजूद श्रीनाथ खंडेलवाल के जीवन का अंतिम अध्याय बेहद कष्टदायक रहा। पारिवारिक तिरस्कार और उपेक्षा के कारण उन्हें वृद्धाश्रम में रहना पड़ा। यह घटना समाज के नैतिक पतन और पारिवारिक मूल्यों की गिरावट का प्रतीक है।
“ऐसा लगता है कि संपत्ति ने उनके अपनों को उनसे दूर कर दिया,”
अमन कबीर ने भावुक होकर कहा। श्रीनाथ खंडेलवाल का निधन केवल एक साहित्यकार की मृत्यु नहीं है, बल्कि यह उन सभी वृद्धजनों की पीड़ा को उजागर करता है, जिन्हें उनके अपने ही परिवारों ने ठुकरा दिया है।
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