November 2, 2024 4:13 PM

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इंद्रपुरी कॉलोनी, विंध्यनगर में संपन्न हुई भव्य काव्य गोष्ठी।

सिंगरौली / सुरेश गुप्त ग्वालियरी/ सोन प्रभात



मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, जिला इकाई सिंगरौली के तत्वावधान में कल 29 अगस्त 2024 को इंद्रपुरी कॉलोनी, विंध्य नगर, वैढन में वरिष्ठ कवि श्री सुरेश गुप्त ग्वालियरी जी के आवास पर सायं सात बजे से काव्य गोष्ठी रीवा से पधारे हुए ख्याति प्राप्त कवि डॉक्टर कैलाश तिवारी जी की अध्यक्षता में वाग्देवी मां सरस्वती जी की पूजा अर्चना के साथ प्रारंभ हुई। वाणी वंदना वरिष्ठ कवि श्री सुरेश मिश्र गौतम जी ने की और कवियों का परिचय ग्वालियरी जी ने दिया तदुपरांत कविता की विविध विधाओं को बेहतरीन अंदाज में उकेरने वाले क्षेत्र के युवा कवि संजीव पाठक सौम्य जी ने
जब भी उठाता हूं कलम
सच लिखने को
मजबूर बेसहारा के
हक में लिखने को।
कविता व्यंग्य की अनुदैर्ध्य तरंगों की प्रबलता के साथ अद्वितीय रूप में प्रस्तुत किया।
       प्रविंदु दुबे चंचल ने
मन की आंखें गुंथी हुई सी
तन भी ज्यों सन्नाटा,
अर्थहीन सब फ्रीज यहां पर
गंधयुक्त है आटा।
कविता के माध्यम से वर्तमान की विद्रूपताओं को बिंबों एवम प्रतीकों से सुसज्जित कर हृदय के स्पंदन की पीड़ा को अभिदर्शित किया, जो काबिले तारीफ़ रहा।


      नारायण दास जी विकल ने दांतों के अभाव एवम कोमल जीभ के आस्वादी प्रभाव
कहते हैं विकल
रसना
होती है कोमल
सारी जिंदगी बिताती
जाती है साथ ही।
की महनीयता और उपादेयता को प्रतिपादित करते हुए दांतों के अभावों की विकलता को रुपायित किया है।
      कवि सुरेश मिश्र गौतम जी ने
एक दिन मयखाने की तरफ जा रहा था
गीत कोई धीरे धीरे गुनगुना रहा था
बुढ़िया एक सामने से इतने में आई
देखकर उसकी दशा, मेरी आंख भर आई।।
कविता में मार्मिकता और संवेदनात्मक अनुभूति की गहराई को स्पर्श किया है, लयात्मक गतिमयता ने भाव सौंदर्य बोध की उत्कृष्टता का जबरदस्त एहसास कराया है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।


      वरिष्ठ कवि श्री सुरेश गुप्त ग्वालियरी जी ने
कभी कभी घर जाया कर
मित्रों से मिल आया कर
यह शहर की अंधी दौड़
न उमर कीमती जाया कर।
कविता के माध्यम से सुप्त अंतःकरण को झकझोर कर जाग्रत करने का पुरजोर प्रयास किया साथ ही कतिपय अन्य रचनाओं को प्रस्तुत कर अभिव्यंजनात्मक पहलुओं को बेबाकी से चित्रांकित किया।
       और अंत में रीवा से पधारे हुए मूर्धन्य रचनाकार ने
स्वर्ग मिला जब संतानों को,
नर्क भोगने लगे पिताजी।
जो सुख मन में रहे संजोए
स्वप्न हुए, जब जगे पिताजी।
तन, मन, धन से पाला पोसा
जिन्हें पढ़ाया था जी भरके।
वह सब आज पराए दिखते
लगते जैसे ठगे पिताजी।
कविता को प्रस्तुत करके यथार्थता का दर्शन कराया, आत्मीयता के आलोक को प्रसारित करने का पुरजोर प्रयास किया, चिंतन को केंद्र बिंदु तक ले जाने का जबरदस्त इशारा था। वाकई में मन गदगद हो गया।


इसके अलावा ढेर सारी बघेली कविताओं के माध्यम से हृदय मरुस्थल में मंजु मंदाकिनी प्रवाहित करने में सफल रहे।
      कार्यक्रम का सफल संचालन प्रविंदु दुबे चंचल ने किया और श्री सुरेश गुप्त ग्वालियरी जी के आभार प्रदर्शन के साथ काव्य गोष्ठी का समापन हुआ।

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