सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
–मति अनुरूप–
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
श्री रामचरितमानस में निषाद राज के लिए और गंगा घाट के नाविक के लिए भी कहीं-कहीं केवट अर्थात एक ही संबोधन प्रयोग में लाया गया है। इस कारण सामान्यतः कुछ लोग केवट और निषादराज को एक ही समझ बैठते हैं, पर ऐसा नहीं है। गुह निषादों का और श्रृंगवेरपुर का स्वामी था, जबकि नाविक गंगा घाट का मल्लाह, जो निषादराज गुह के ही अधीन था। दोनों दो थे। यथा–
‘उतरि ठाढ भए सुरसरि रेता। सीय राम गुह लखन समेता।
तब – ‘केवट उतरि दण्डवत कीन्हा।’ यहां भी दो ही लक्षित हो रहे है, अन्यथा प्रभु को अपने मित्र, जो स्वयं को प्रभु का सेवक मानता है, से नाव हेतु निवेदन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। केवट की सेवा मात्र गंगा घाट तक ही थी, जबकि निषादराज की सेवा श्रृंगवेरपुर से आरंभ होकर चित्रकूट तक गई और यही निषादराज राम राज्याभिषेक में भी शामिल रहे।
यदि घाट का मल्लाह निषादराज का कुटुम्बी सेवक था और निषादराज स्वयं प्रभु के साथ ही थे, तो मल्लाह ने नाव न लाने की ऐसी धृष्टता कैसे की? निषादराज ने उसे दण्डित क्यों नहीं किया। शायद यह नाविक निषादराज का स्वजन या कुटुम्बी ही था। निषादराज गुह को लक्ष्मण जी के द्वारा प्रभु का मर्म भी पता हो गया है। निषादराज प्रभु को अपने घर ले जा कर उनका चरणोदक भी नही ले सके। प्रभु द्वारा उनके आग्रह को विनय पूर्वक मना भी कर दिया है, यथा–
कृपा करिय पुर धारिय पाउ। थापिय जनु सब लोग सिहाउ।
कहेहु सत्य सबु सखा सुजाना। मोहि दीन्ह पितु आयसु आना।
अतः प्रभु के चरणोदक प्राप्ति की लालसा में यह तरकीब निषादराज की ही प्रतीत हो रही है, ताकि प्रभु का चरणोदक प्राप्त कर अपना और अपने कुल का उद्धार किया जा सके। इसके लिए नाविक से मिल– बैठ कर योजना बनाई है तथा इस दौरान उस नाविक को भी प्रभु का मर्म बोध करा दिया है। इसी कारण केवल मर्म जानने की बात करते हुए नाव लाने से मना कर देता है, यथा–
माँगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मै जाना।
और प्रभु की अनुमति होते ही बड़े कठौती में पानी भर लाया, जिससे सामान्यतः यही समझ में आए कि लकड़ी की नाव बचाने की परीक्षा हेतु ही लकड़ी की कठौता पर परीक्षा की जा रही है–
केवट राम रजायसु पावा। पानि कठौता भरि लइ आवा।
बड़े कठौते में भर कर पानी इसलिए लाया कि चरणोदक परिवार के समस्त लोगों को पीने के लिए आसानी से पूर पड़े।
पद पखारि जलपान करि, आपु सहित परिवार।
पितर पार करि प्रभुहि पुनि,मुदित गयउ लै पार।
निषादराज की यही इच्छा (रुचि) थी कि –
कृपा करिय पुर धारिय पाउ।थापिय जनु सब लोग सिहाउ।
प्रभु सदैव अपने भक्तों की रुचि पूरी करते हैं– ‘राम सदा सेवक रूचि राखी।’
और यहां भी भक्त निषाद की वह रुचि उसके ही कुटुंबी केवट के द्वारा पूरी हो रही है।
बरसि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुन्य पुंज कोउ नाहीं।
निषादराज को उनके परिजनों सहित बारम्बार प्रणाम।
जय जय श्री राम
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रामचरितमानस –ः “कुलिसहु चाहि कठोर अति, कोमल कुसुमहु चाहि।” –मति अनुरूप– जयंत प्रसाद
पूर्व प्रकाशित रामचरितमानस अंक – मति अनुरूप–
Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.