सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख)
– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )
–मति अनुरूप–
ॐ साम्ब शिवाय नम:
श्री हनुमते नमः
श्री रामचरितमानस के आधार पर आज केवट प्रसंग की चर्चा करते हैं। मंत्री सुमंत्र को जबरन लौटाने के पश्चात प्रभु गंगा किनारे पहुंचे-
बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए।
और घाट के नाविक से नाव लाने का निवेदन किया, पर केवट यह कहकर नाव लाने से मना कर दिया कि मैं आपका मर्म जानता हूं। यथा-
मांगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।

मर्म, अर्थात संकेत है कि आप यथार्थ में कौन है, मैं जान गया हूं, पर मर्म को बताते हुए कहता है कि आपके चरण रज में निर्जीव को मनुष्य बनाने की जड़ी (जादू) है इस प्रकार अहिल्या कथा प्रसंग के माध्यम से संकेत करता है कि हे! प्रभु मुझमें मानवता के अभाव के कारण मैं मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हूं पर आपकी चरणों की कृपा यथार्थ (मानवतायुक्त) मनुष्य का निर्माण कर देती है, जिससे जीव का उद्धार हो जाता है।-
चरण कमल रज कहुँ सब कहई। मानुस करनि मुरि कछु अहई।
पर अहिल्या तो पाषाण थी, जो सुंदरी बनी, तुम्हारी नाव पत्थर थोड़े ही है। केवल ने बड़ी ही चतुराई से कहा- कठोर पत्थर को परिवर्तित कर दिया तो लकड़ी की क्या विसात।
छुवत सिला भइ नारि सुहाई।पाहन ते न काठ कठिनाई।
यदि मेरी नौका नारि बन गई तो मेरा घर नर्क (सौत तैयार हो जाने के कारण) हो जाएगा और यदि यह नारी बन अहिल्या की तरह उड़ गई तो साधन के अभाव में आपका रास्ता अवरुद्ध हो जाएगा और मेरी जीविका समाप्त हो जाएगी, क्योंकि नाव चलाने के अलावा मैं कोई और काम जानता नहीं हूँ। अतः यदि आप पार जाना चाहते हैं तो मुझे चरण धोने की आज्ञा दें।
जौ प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू।
बस चरण धुलवा लें, कोई और उपाय नहीं है। भले ही लक्ष्मण जी मेरे ऊपर बाण प्रहार कर दें, आपके और आपके पिता की सौगंध में पार नहीं उतारूंगा। –
बरु तीर मारहि लखनु पै जब लागि न पाय पखारिहौं।
तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपालु पार उतारिहौं।
केवट के ऐसे अटपटे वाणी को सुनकर लक्ष्मण और सीता को देख प्रभु मुस्कुरा दिए। यथा-
सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे।
विहसे से करुना ऐन, चितइ जानकी लखन तन।
ताकि दोनों यह समझ जाएं कि उसके अटपटे कथन पर प्रभु प्रसन्न हैं और प्रेम की अधिकता के कारण ही केवट ऐसा बोल रहा है- ‘ रामहि केवल प्रेम पियारा।’
प्रभु तो शब्दों नहीं भावना ही ग्रहण करते हैं –
रहत न प्रभु चित चूक किए की। करत सूरति सय बार हिए की।
और – ‘रीझत राम जानि जन जी की।’
अतः प्रभु ने प्रसन्नता पूर्वक चरण धोने की अनुमति दे दी। केवट भी चरणोदक प्राप्त कर प्रभु को गंगा पार किया तथा प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण के बहुत प्रयास करने पर भी उतराई नहीं ली-
बहुत कीन्ह प्रभु लखन सिय, नहि कछु केवट लेइ।
केवट ने कहा- हे! प्रभु आप परदेश जा रहे हैं, अभी नहीं, लौटते समय यदि कुछ देंगे तो उसे शिरोधार्य करूंगा-
फिरती बार नाथ जो देवा। सो प्रसाद मै सिरधरि लेवा।
और इस प्रकार बड़ी चतुराई से पुनः मिलन की युक्ति के साथ ही प्रभु की विमल भक्ति प्राप्त कर ली। ऐसा भक्त केवट धन्य है-
विदा कीन्ह करूना यतन, भगति विमल वरु देइ।
-जय जय श्री सीताराम-
-जयंत प्रसाद
- प्रिय पाठक! रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक- 8953253637 पर आमंत्रित हैं।
Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.
रामचरितमानस –ः “कुलिसहु चाहि कठोर अति, कोमल कुसुमहु चाहि।” –मति अनुरूप– जयंत प्रसाद
पूर्व प्रकाशित रामचरितमानस अंक – मति अनुरूप–

Son Prabhat Live News is the leading Hindi news website dedicated to delivering reliable, timely, and comprehensive news coverage from Sonbhadra, Uttar Pradesh, and beyond. Established with a commitment to truthful journalism, we aim to keep our readers informed about regional, national, and global events.

