November 22, 2024 6:00 AM

Menu

रामचरितमानस-: “मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला।” – मति अनुरुप- अंक 43. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) रामचरितमानस

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

 

मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला।

यह प्रसंग अरण्यकांड के सीता हरण प्रसंग का है । उक्त पंक्ति मानस जिज्ञासुओं के बीच विशेष चर्चा का विषय रहता है। प्रायः पाठक –गणों के मन में इन पंक्तियों के संदर्भ में सामान्यतया दो प्रश्न खड़े होते हैं।  प्रथम की सीता जी ने कौन सा मर्म बचन बोला अर्थात मर्म बचन की व्याख्या क्या है और आज सीता जी के द्वारा कौन सा रहस्योद्घाटन हुआ?  और दूसरा प्रश्न यह कि – “सीता बोला” कुछ अटपटा सा लगता है, इसके स्थान पर सीता बोली होना चाहिए था।  क्या गोस्वामी जी को शब्दों और भावों का टोटा पड़ गया,  जिसके कारण उन्हें “बोली” के स्थान पर “बोला” लिखना पड़ा?

 

इस प्रसंग की कथा मैंने पूज्य श्री राम भद्राचार्य जी से सुनी, उन्होंने –
“मरम बचन जब सीता बोली। हरि प्रेरित लक्षिमन मति डोली।” ऐसा कह कर व्याख्या की, पर मेरे मति के अनुसार ऐसा करना इस कारण ठीक नहीं है कि मूल चौपाई तो “मरम बचन जब सीता बोला,” है। इसे बदलना मतलब, इसे मूल चौपाई ना मानना है या तुलसी की रचना त्रुटि पूर्ण है।

पर मेरे विचार से मूल रचना का रहस्य जानने का हमें प्रयास करना चाहिए।  इस संदर्भ में मेरा विचार कुछ अलग है।  इस बात को ठीक ढंग से समझने के लिए ठीक इससे पहले के प्रसंग पर दृष्टि डालें  – “जब लक्ष्मण जी भोजन हेतु कंद–मूल लेने वन में गए तब श्री राम ने सीता को अग्नि में प्रवेश करने को कहा,”  ताकि प्रभु की आगे की लीला हो सके।–

सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नर लीला।
तुम्ह पावक महु करहु निवासा। जब लगि करहुँ निसाचर नासा।

सीता जी ने आज्ञा शिरोधार्य कर अपनी परछायीं  रख अग्नि में प्रवेश कर गयी– और इस मर्म को लक्ष्मण ने भी नहीं जाना।

निज प्रतिबिम्ब राखि तहँ सीता। तैसेइ रूप सील सुविनीता।

लक्षिमनहू यह मरम न जाना। जो कछु चरित रचा भगवाना। और आज जब श्रीराम स्वर्ण मृग के पीछे चले तो लक्ष्मण को आदेश दिया–  सीता केरि करेहु रखवारी। बुद्धि बिबेक बल समय विचारी।

जब मारीच ने अपने अंत काल में राम की आवाज में लक्ष्मण को पुकारा तो लक्ष्मण  टस से मस नहीं हुए, वे आश्वस्त थे कि प्रभु श्रीराम पर विपत्ति आ ही नहीं सकती अतः वे सीता को अकेली छोड़कर जाना राम की आज्ञा का अवहेलना समझ, राम के पीछे जाने को तैयार नहीं थे।  सीता जी ने सोचा कि श्री प्रभु की लीला लक्ष्मण के न जाने से बाधित हो रही है, इस कारण इन्हें मर्म बताना जरूरी समझा, पर जिसे रामजी ने छिपाया उसे सीता जी बताने की अधिकारी नहीं थी। इस कारण सीता जी कुछ बोल नहीं पा रही है, तभी “सीता जी की आवाज में सीता जी के मुख से ही राम बोल पड़े और आवश्यकता भर लक्ष्मण जी को मर्म बता दिया।  राम बोले इसी बात का संकेत “सीता बोला” लिखकर किया गया है। मर्म के अंतर्गत यह तो नहीं बताया गया कि यह छाया की सीता है पर यह जरूर बता दिया गया कि यह सब प्रभु के चाहने से ही हो रहा है, साथ ही उस आवाज ने प्रभु के आदेश की चतुराई का मर्म भी लक्ष्मण को भली भाँति समझा दिया–  राम का आदेश था–

सीता केरि करेहु रखवारी। बुद्धि बिबेक बल समय विचारी।

 सीता की रखवाली बुद्धि, विवेक, बलऔर समय का विचार करते हुए करना है।  अतः लक्ष्मण जी ने बुद्धि का प्रयोग रेखा खींचकर रक्षा करने के विचार से किया।  विवेक का प्रयोग करते हुए राम की आज्ञा का रहस्य समझकर सीता जी का आदेश मानने में किया। अभिमंत्रित कर रेखा खींचकर बल का प्रयोग किया और समय का विचार कर राम के पीछे चल दिए।

व्याकरण की दृष्टि से तो “सीता बोला” त्रुटिपूर्ण है। गोस्वामी जी की घोषणा है कि–

कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहउँ लिखि कागत कोरे। इस प्रकार स्थान– स्थान पर काव्य दोष को गोस्वामी जी स्वीकार करते हैं। पर कविताओं में कारक और विभक्तियों का लोप होता रहता है।  मानस प्रेमी चर्चा करते हैं कि संपूर्ण मानस में सिर्फ एक जगह ऐसा आया, इस कारण इसमें कोई विशेष रहस्य अवश्य है, पर मेरा अध्ययन बताता है कि ऐसा प्रयोग मानस में और जगहों पर भी मिलता है। अतः सीता (ने) मर्म बचन बोला अर्थात “ने” के छिपे होने के कारण जो कविता में संभव है।  मानसकार की यह चौपाई त्रुटि रहित है, अतः सीता के मर्म बचन बोलने और प्रभु की प्रेरणा से लक्ष्मण का मन अपने निश्चय से डिगा और राम के पीछे चल दिए।

मरम बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन मन डोला।

जय जय श्री सीताराम

-जयंत प्रसाद

  • प्रिय पाठक! रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक- 8953253637 पर आमंत्रित हैं।

रामचरितमानस-: “उमा दारू जोषित की नाईं। सबहिं नचावत राम गोसाईं।”- मति अनुरुप- अंक 41. जयंत प्रसाद

Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On