उमेश कुमार -संवाददाता(सोनप्रभात)

चोपन (सोनभद्र): विरसा मुंडा आदिवासी समाज के भगवान हैं। उक्त बातें ओबरा विधानसभा के चोपन मंडल के कुरहुल ग्राम सभा में भाजपा जनजाति मोर्चा राष्ट्रीय कार्य समिति सदस्य दीपक सिंह गोंड ने कही।
सदस्य दीपक सिंह गोंड ने कहा कि पहली अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।
1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे। बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं। जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 मार्च 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून1900 को अंग्रेजों ने जहर देकर मार दिया। 1900 को राँची कारागार में लीं। बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल आदि के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। कार्यक्रम में चोपन भाजपा मंडल अध्यक्ष
सुनील सिंह, डॉक्टर सतेंद्र आर्य,हिमांशु प्रियदर्शी, तेजवंत पांडेय और बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग उपस्थित रहे। बता दें कि आदिवासी व मौजूद लोगों में कोरोना से बचाव हेतु विविध सामग्री बांटी गई।

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