लेख : आलोक गुप्ता (यू.पी.कॉलेज वाराणसी : बी. एस. सी. कृषि विज्ञान) Sonbhadra News : Sonprabhat Live
सोनभद्र की आदिवासी संस्कृति: वाद्य यंत्र और लोक नृत्य कलाएं
“भारत की विविध संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं हमारे देश के आदिवासी समुदाय। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में रहने वाले आदिवासी समुदाय की अपनी एक अनोखी संस्कृति और परंपराएं हैं। इस लेख में, हम सोनभद्र के आदिवासी समुदाय के वाद्य यंत्रों और नृत्य कलाओं की एक झलक लेंगे, जो उनकी संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।”
सोनभद्र की आदिवासी संस्कृति में प्रयुक्त वाद्य यंत्रों की सूची पर एक बार नजर डाल लेते हैं। – मांदल, सिंघा बाजा, टईयां, ढपला, आदिवासी शहनाई, मोरबीन, घुंघरू,घुंघरा, घुंघना, पैंजन, छाल, झाल, ढोल, डिग्गी।
आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक विरासत: सोनभद्र के वाद्य यंत्र : मांदल (मांदर)
मांदल एक प्रकार का वाद्य यंत्र है जो की आदिवासी समुदायों में एक पूजनीय वाद्य यंत्र के रूप में स्थान रखता है, आदिवासी लोगों की मान्यता है कि इंद्रदेव की पूजा इसी वाद्य यंत्र को बजाकर की जाती है।
मांदल बनाने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाता है, सामान्यतः इस वाद्य यंत्र को बनाने के लिए बीजा नामक पेड़ की लकड़ी वर्षा ऋतु के आरंभ में ली जाती है, गोंड समुदाय के लोग पेड़ को काटने से पहले उसके प्रार्थना करते हैं कि वह इस मांदल बनाने के लिए काट रहे हैं ताकि बनने के बाद उससे एक अच्छी ध्वनि निकल जा सके। पेड़ काटने के बाद उसी लकड़ी से मांदल बनाया जाता है और उसे कम से कम एक साल के लिए किसी सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है फिर वर्षा ऋतु से पहले इसे बाहर निकाला जाता है तत्वपश्चात मांदल पर खाल लगाई जाती है। खाल लगाते समय भी एक उचित पूजा की जाती है ताकि यह बजाते समय फटे नहीं, मांदल बनाने की प्रक्रिया लंबी होती है।
सोनभद्र की आदिवासी संस्कृति का संगम: वाद्य यंत्र – सिंहा बाजा
इस वाद्य यंत्र को गुदुंम, निशान या घसिया बाजा के नाम से भी जाना जाता है, यह वाद्य यंत्र एक छोटे नगाड़े के रूप में गले में टांग कर विशेष प्रकार के रबड़ के ठोस टुकड़े से बजाया जाता है। जैसे कि सिंहा नाम से ही बोध हो रहा है कि इसमें बारहसिंघा के सींगों का प्रयोग किया जाता है, इस वाद्य यंत्र के बजाने वाले व्यक्ति को निशनहा भी कहते हैं, ज्यादातर आदिवासी समुदाय के कलाकार इसे घूम-घूम कर नाच कर और कलाबाजी करते हुए बजाते हैं।
टईयां-
टईयां एक विशेष प्रकार की मिट्टी की एक छोटी सी नगड़िया नुमा एक साज है जिसे गले में लटका कर नीचे बैठकर या खड़े होकर लकड़ी के दो डंडों से बजाया जाता है।
ढपला-
यह देखने में एक साधारण डफ जैसा दिखाई देता है लेकिन इसकी खाल को मढ़ने के लिए इसको नगाड़े की तरह बिनाई करके खाल को रोका जाता है, ढपले का वादन एक मोटी लकड़ी छड़ से तथा एक पतली लकड़ी छड़ से कंधे पर टांग कर या कमर पर लटका कर नाच-नाच कर किया जाता है।
आदिवासी शहनाई-
यह ताड़ के पत्तों से बनी आदिवासी शहनाई मूल शहनाई से काफी भिन्न होती है, इसकी लंबाई अधिकतम एक फिट होती है, इसको बजाने वाले कलाकार स्वयं ताड़ के पत्ते से इसे बजाते और ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
मोरबीन-
इस वाद्य यंत्र को मउहर बीन भी कहा जाता है, यह दिखने में एक लंबी बांसुरी की तरह दिखता है इसके बीच में इसे बजाने के लिए एक विशेष छिद्र किया जाता है जिसमें मुंह द्वारा हवा फूंक कर स्वरों की उत्पत्ति की जाती है।
घुंघना-
इस वाद्य यंत्र को घुघरा या झुनझुना के रूप में भी जाना जाता है, यह देखने में गदानुमा होता है जिसके अंदर लोगे या पीतल की छोटी-छोटी गोलियां पड़ी होती है इसे हिलाने पर। छन्न-छन्न की आवाज आती है।
पैंजन-
आदिवासी कलाकारों का यह एक प्रमुख वाद्य यंत्र है, जिस पैर में पहनकर छन्न-छन्न की आवाज करने वाला यह एक लोहे का कड़ा होता है, जिसके अंदर लोहे की ही छोटी-छोटी गोलियां होती हैं, पैरों के आकर्षण करने पर इस वाद्य यंत्र से ध्वनि उत्पन्न होती है जिसका आवाज काफी सुंदर होता है।
झाल-
इस वाद्य यंत्र को झांझ या बड़ा मजीरा के भी नाम से जाना जाता है, यह विशेष पीतल या फूल धातु का होता है, इनके दो हिस्से होते हैं जिनको आपस में टकराने पर ध्वनि उत्पन्न होती है।
ढोल-
यह वाद्य यंत्र एक विशेष आकृति माप का ढोल जो कि अन्य ढोल से काफी अलग दिखता है, यह लकड़ी के दो छड़ों से बजाया जाता है इसका प्रयोग शादी बारात वह अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी किया जाता है।
डिग्गी-
यह एक विशेष प्रकार का यंत्र है जिसे दो चरणों से बजाया जाता है।
सोनभद्र की नृत्य- कलाओं में सबसे प्रसिद्ध करमा नृत्य
आदिवासी संप्रदाय में कर्म देवता को इष्ट देव माना गया है, उनके सभी मांगलिक व धार्मिक कार्य अपने कर्म देवता की पूजा करके ही किए जाते हैं इस संप्रदाय में आज भी बलि पूजा को माना जाता है, इसके बाद इस विशेष नृत्य की एक मान्यता यह भी है कि इस संप्रदाय में सात विवाहित महिलाएं कदंब की डाली कि विशेष पूजा अर्चना कर उसे स्थापित करती हैं तथा जो विशेष नृत्य इस अवसर पर किया जाता है उसे करमा नृत्य कहते हैं। इसमें महिला कलाकार नृत्य व गायन दोनों करती हैं और पुरुष कलाकार मांदल बजाकर नृत्य करते हैं।
उम्मीद करते हैं सोन प्रभात द्वारा संकलित यह लेख आपको पसंद आया होगा।
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Ashish Gupta is an Indian independent journalist. He has been continuously bringing issues of public interest to light with his writing skills and video news reporting. Hailing from Sonbhadra district, he is a famous name in journalism of Sonbhadra district.