November 22, 2024 8:04 PM

Menu

रामचरित मानस:- बड़े भाग मानुष तनु पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि  गावा। मति अनुरूप – जयन्त प्रसाद 

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चन्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

 

– मति अनुरूप –

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

 

बड़े भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि  गावा।।

बड़े भाग से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है, और यह मानव शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसा सभी सद्ग्रंथो की घोषणा है। यह मानव तन अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साधन योनि है, जिससे हम अपना परलोक सुधार सकते हैं, यह मानव तन ही मोक्ष का द्वार भी है। –  “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।” 

 

मानव शरीर के लिए तो देवता भी तरसते हैं, उनकी अभिलाषा रहती है कि यदि मानव शरीर मिल जाता तो हम भी समुचित साधनों के द्वारा जन्म–मरण के बंधन को काट मोक्ष प्राप्त करने का उपक्रम कर पाते। देवयोनि तो भोग योनि है और अपने  सत्कर्मों का सुख फल भोग कर पुनः देवों को स्वर्ग के इतर लोकों में गिरकर अन्यान्य योनियों में भटकना पड़ता है।  एकमात्र मनुष्य तन के द्वारा ही कर्म करके हम कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। यह मानव जीवन सब कुछ दे सकने का सामर्थ्य रखता है,  यथा–

नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी। ज्ञान विराग सकल सुख देनी।।

अतः यह सिद्ध है, कि मनुष्य के समान कोई शरीर नहीं है, जिसकी याचना देव भी करते हैं–

नर समान नहि  कवनिउ देही।” 

यह बडभागी मानव तन को पाकर भी जिसने अपना परलोक नहीं सँवारा उसके भाग्य में पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता और वह दु:ख भोगता है।–

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाइ न जेहि परलोक सँवारा।।

सो परत्र दु:ख पावई , सिर धुनि– धुनि पछ्तिाइ।

चूँकि ईश्वर की बड़ी कृपा से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है–

कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस  बिनु हेत सनेही।।

इस कारण इस शरीर को विषयों में जाया करना कहां तक समझदारी है,  स्वर्ग भी तो अल्प समय के लिए होता है और अन्तत: दु:ख ही भोगना पड़ता है। यथा–

यहि तन कर फल विषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दु:खदायी।।

 

 

मानव जीवन प्राप्त कर विषय–वासनाओं में मन लगाना, अमृत के बदले विष ग्रहण करने जैसी मूर्खता है और इसे कोई भी अच्छा नहीं कहता, यथा–

नरतनु पाइ बिसय मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।

ताहि कबहुँ भल कहइ कि कोई। गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई।। 

यहां एक ही बात के लिए एक ही प्रसंग में मानसकार ने दो उपमाओं का उल्लेख किया है– १– सुधा ते विष सठ लेहीं और २–  गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई।  क्यों?

यह प्रसंग “रामगीता” का है,  जहां गृहस्थ और विरक्त दोनों वर्गों के लोग ईश्वर उपदेश सुन रहे हैं–  यहां प्रथम उपमा गृहस्थों के लिए है।  गृहस्थ के लिए कर्मों का त्याग संभव नहीं है, अस्तु वे मन से ही विषयों का त्याग करें अन्यथा मन को विषयों में आसक्त करना मृत्यु के वरण के समान है।

अब दूसरा उपमा उन विरक्तों के लिए है, जिन्होंने कर्मों को त्याग कर समस्त प्रपंचो से मुंह मोड़ कर संन्यास ग्रहण कर लिया है और चतुर्थ आश्रम का आश्रय और वेश ग्रहण कर लिया है। यदि वे पुन: कर्म में प्रवृत्त होते हैं या मन में भी विषयों को लाते हैं तो वे अनमोल पारस मणि को गवाँ कौड़ी की चीज घुँघची ग्रहण कर रहे हैं।  इसी कारण ‘मन’ शब्द का प्रयोग पहली उपमा में, तथा दूसरी उपमा में कर्म परक ‘ग्रहइ’ शब्द का प्रयोग किया गया है।

 

प्रथमत: गृहस्थाें को इस चूक के लिए शठ कहकर विष लेने की बात कही गयी, जबकि विरक्तों को मन में भी विषयों का चिंतन करना उससे भी बड़ी चूक है, पर उनके लिए नरमी बरतते हुए बस यही कहा गया है, कि उन्हें कोई अच्छा नहीं कहेगा। अतः यदि नर तन प्राप्त कर भी विषयों में आसक्ति है तो चौरासी लाख योनियों में भटकने की तैयारी है।

इस चार प्रकार की सृष्टि (अण्डज, पिण्डज,स्वेदज और स्थावर ) में चौरासी लाख योनियां है–  20 लाख वृक्षादि, 9 लाख जलज, 11 लाख कृमि, कीड़े –मकोड़े, 10 लाख पक्षीगण, 30 लाख चौपाये और 4 लाख शाखा मृग है।

मनुष्य इनके इतर योनि है जो कर्म योनि है और साधन धाम है।  इसके अतिरिक्त भूलोक की सभी योनि कर्मों के भोग के लिए हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्ति का अवसर नहीं है।  भगवान की कृपा से ही यह मानव तन प्राप्त होता है। ईश्वर की लीला अनंत है, इस कारण कभी-कभी इतर योनियों में भी मुक्ति ईश्वर की कृपा से मिलती है, पर मोक्ष हेतु अवसर तो मानव के पास ही है–

नर समान नहिं कवनिउ देहि। देत ईस बिन हेतु सनेही।।

बड़े भाग मानुष तनु पावा।  सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हिं गावा।।

 

–जय जय श्री राम–

–जयन्त प्रसाद

अंक – ३६ – लेख यहां – 

रामचरितमानस-: “मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीति। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीति। “- मति अनुरुप- अंक 36. जयंत प्रसाद –

रामचरितमानस-: “मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीति। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीति। “- मति अनुरुप- अंक 36. जयंत प्रसाद

 

Also Read : 

ऑनलाइन पैसा कैसे कमाएं? यूट्यूब, ब्लॉगिंग,आखिर क्यों भाग रही युवा पीढ़ी इसके पीछे? Online Paise Kaise Kamaye

 

संपादन – आशीष कुमार गुप्ता 

 

 

  • प्रिय पाठक!  रामचरितमानस के विभिन्न प्रसंग से जुड़े लेख प्रत्येक शनिवार प्रकाशित होंगे। लेख से सम्बंधित आपके विचार व्हाट्सप न0 लेखक- 9936127657, प्रकाशक-  8953253637 पर आमंत्रित हैं।

Click Here to Download the sonprabhat mobile app from Google Play Store.

 

For More Updates Follow Us On

For More Updates Follow Us On