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रामचरितमानस-: “मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीति। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीति। “- मति अनुरुप- अंक 36. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

 

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती।

श्री रामचरितमानस में जब विभीषण जी ने पुनः पैर पकड़ कर रावण से सीता को सादर लौटाने की बात कही तो रावण ने उक्त बातें कहते हुए विभीषण जी पर चरण प्रहार किया, पर संत विभीषण जी ने बार-बार अपने भाई को सन्मार्ग पर लगाने का प्रयास किया।

सीता को वापस करने की बात जिसने भी की, रावण बिगड़ा तो सब पर, पद प्रहार भी किया पर–  “सठ मिलु जाइ तिन्हहिं कहु नीती।” मात्र विभीषण के लिए ही कहा।  वस्तुतः रावण के मन में यह बात बैठ गई थी कि यह जो कुछ भी मंत्रणा देता है, उससे हानि ही होती है। इसी के मंत्रणा पर हनुमान को मृत्युदंड नहीं दिया गया और उसने लंका जला दी।

 

अतः यदि यह राम से मिल जाएगा तो राम लंका के विषय में सारी मंत्रणा इसी से करेंगे और मेरे तरह ही राम को भी उल्टा ही परिणाम मिलेगा। “मम पुर” कह कर रावण ने अपने को राजा और विभीषण जी को साधारण प्रजा की तरह सूचित किया। राम को तपसी कह कर, “रावण ने प्रभु को घर से निकाला दिया गया नकारा होने का संकेत करते हुए विभीषण को भी नकारा होने के कारण बेघर होकर रहने का संकेत किया और अपमानित करते हुए यह संकेत किया कि उसी के साथ तेरी संगत ठीक रहेगी।” विभीषण जी को यह अपमान सहन नहीं हुआ क्योंकि–

हरि हर निन्दा सुनई जो काना। होई पाप गोघात समाना।

सन्त संभुश्रीपति अपवादा। सुनिय जहाँ तहँ अस मरजादा।

काटिय जीभ तासु जो बसाई। श्रवन मूदि न त चलिय पराई।

और यही सोचकर रावण का त्याग कर दिया। विभीषण सोचने लगे–  “रावण अभिमान के कारण त्रिलोकीनाथ को तपस्वी और अपने को महाराजा कह रहा है, तो देखें प्रभु लंका का राजा किसे बनाते हैं? ”  ऐसा विचार कर ही अपने मंत्रियों के साथ वहां से चल दिए।–

“सचिव संग लै नभ पथ गयउ।” अन्यथा वे अपने साथ अपने मंत्रियों को क्यों ले जाते?  “राम सदा सेवक रूचि राखी” इसी कारण मिलते ही विभीषण को लंकेश कहते हुए समुद्र के जल से तिलक कर दिया। यथा–

कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा।

अस कहि राम तिलक तेहि सारा।”   

श्रीराम के समक्ष पहुंचते ही विभीषण की सारी वासना समाप्त हो गई। इससे पूर्व लंका का राजा देखें कौन बनता है, यह वासना थी तभी तो सचिव साथ लेकर आए थे। इस बात का संकेत यहां भी है–

उर कछु प्रथम वासना रही। प्रभु पद प्रीती सरित सो बही।

पर प्रभु भक्तों के सपने में भी उठी रुचि को पूरा करते हैं–  अतः राम जी ने कहा कि आपकी इच्छा (वासना) नहीं है पर–

जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरस अमोघ जग माहीं।

विभीषण जी को तो पहले से ही निर्मल भक्ति प्राप्त थी–

तेहि मांगेउ भगवंत पद,  कमल अमल अनुराग।

पर बीच में प्रसंग वस थोड़ी वासना जागृत हुई थी जो राम पद प्रीति की सरिता में बह गई।

“सचिव संग लै नभ पथ गयऊ।” आकाश की ओर क्यों गए ? प्रथम तो वे सद्य लंका को त्याग कर उसके राज्य की भूमि से विरत हो आकाश में चले गये। दूसरे यह कि आकाश की ऊंचाई पर जाकर रावण को भली प्रकार सचेत करते हुए राम के पास जाने की घोषणा करनी थी जिसे सभी लंका वासी भी सुन लें। और ऊपर जाकर कहा–

राम सत्य संकल्प प्रभु, सभा कालवस तोरि।
मैं रघुवीर सरन अब,जाउ देहु जन खोरि।

तीसरी बात यह कि राम की भक्ति शिव जी ही देते हैं, अतः शिवजी के पास कैलाश पर्वत और कुबेर जी के यहां भी गए क्योंकि शिवजी प्रायः कुबेर के यहां आते-जाते रहते थे, यथा–

“जात रहेउ कुबेर गृह रहेहु उमा कैलास।”

ताकि राम की चरणों में भक्ति दृढ़ हो सके। कहा जाता है कि शिवजी से उनकी भेंट भी हुई थी और शिव जी ने उन्हें राम के पास जाने की सलाह भी दी थी अतः विभीषण के जाते ही –

अस कहि चला विभीषण जब ही। आयू हीन भए सब तबही।
रावन जबहिं विभीषन त्यागा। भयउ विभव बिनु तवहिं अभागा।

 

जय जय श्री सीताराम

  -जयंत प्रसाद

 

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पिछला प्रकाशित अंक – 35 – Also Read.

रामचरितमानस-: “सो पर नारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चन्द कि नाईं। ” – मति अनुरुप- अंक 35. जयंत प्रसाद

 

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Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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