gtag('config', 'UA-178504858-1'); महाशिवरात्रि पर विशेष:- शिवलिंग पर भक्त क्यों नहीं चढ़ाते हैं तुलसी, पढ़ें जालंधर नामक राक्षस से जुड़ी कथा। - सोन प्रभात लाइव
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महाशिवरात्रि पर विशेष:- शिवलिंग पर भक्त क्यों नहीं चढ़ाते हैं तुलसी, पढ़ें जालंधर नामक राक्षस से जुड़ी कथा।

लेख- एस. के.गुप्त “प्रखर” – सोनप्रभात

महाशिवरात्रि का पर्व पंचांग के अनुसार 11 मार्च 2021 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव के साथ साथ शिव परिवार की भी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। महाशिवरात्रि पर्व मनाने को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार यह पर्व शिव और माता पार्वती के मिलन की रात के रूप में मनाया जाता है। लोगो की मान्यता है कि आज ही के दिन माता पार्वती जी का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक मान्यता औऱ भी है कि इसी दिन शिव जी 64 शिवलिंग के रूप में संसार में प्रकट हुए थे। जिनमें से उनके भक्तजन बारह शिवलिंग को ही ढूंढ पाए। जिन्हें हम सभी बारह ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त लोग कई उपाय करते हैं। भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए शिवभक्त व्रत रखने के साथ ही भगवान को धतूरा, बेलपत्र आदि अर्पित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि  भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि पूजा में तुलसी के इस्तेमाल से भोलेनाथ नाराज हो सकते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नामक राक्षस भगवान शिव का अंश होने के बाद भी उनका दुश्मन था। उसे अपनी वीरता पर बड़ा अभिमान था। वह महादेव से युद्ध करके उनका स्थान प्राप्त करना चाहता था। ऐसा माना जाता है कि अमर होने के लिए उसने वृंदा नाम की कन्या से विवाह किया। वृंदा पूरी जिदंगी पतिव्रता धर्म का पालन किया। इस कारण उसे सबसे पवित्र माना जाती थी। जालंधर को विष्णु जी के कवच की वजह से अमर होने का वरदान मिला हुआ था।

मगर राक्षस जाति का होने से जालंधर देवताओं पर राज करना चाहता था। इसलिए उसने शिव जी को युद्ध करने की चुनौती दी। मगर वृंदा के पतिव्रता होने के कारण उसे मार पाना मुश्किल हो रहा था। इसके चलते भगवान शिव और विष्णु जी ने उसे मारने के लिए एक उपाय सोचा। सबसे पहले तो भगवान विष्णु से जालंधर कवच ले लिया। उसके बाद जालंधर की अनुपस्थिति में वृंदा की पवित्रता को भंग करने के लिए उनके महल में जालंधर का रूप धारण कर पहुंचे।

इस तरह वृंदा का पति धर्म भंग होते ही जालंधर का अमरत्व का वरदान भी खत्म हो गया। इस तरह भगवान शिव ने उसे मार दिया। जब वृंदा को इस बात का पता चला कि उसके साथ धोखा हुआ है तो उसने क्रोध में आकर भगवान शिव को श्राप दिया कि उनकी पूजा में कभी भी तुलसी की पत्तियां नहीं इस्तेमाल की जाएंगी।

भगवान शिव की पूजा में दूध के प्रयोग का विशेष महत्व होता है। दूध को धर्म और मन के प्रभाव के दृष्टिकोण से सात्विक माना जाता है। गाय के दूध सबसे पवित्र और उत्तम माना जाता है।

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