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सम्पादकीय-: किसका किसका दर्द सुनायें अपना दर्द भला क्या कम है??

– सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”
(सोनप्रभात- सम्पादक मन्डल सदस्य)

“अब आप ही बताइये ,जब जाम टकराने का समय होता है , उसी समय कोई बड़ा चेहरा टी वी पर देश की अर्थ व्यवस्था पर ज्ञान बांटने आ जाता है।”

ऊपर से मौसम का रूखापन! ये सब्जी की दुकान नहीं है न, कि सुबह के भोजन के लिए व्यवस्था करनी है।हमारे यहां तो सात बजे के बाद ही हंगामा शुरू होता है। इसी समय से तो लोगो का मूड बनना, अपना ग्रुप ढूढ़ना, फिर पैसे की व्यवस्था जुटाना और घर से बाहर निकलने का बहाना खोजना जैसे आवश्यक कार्य प्रारम्भ होते है।

सरकार कहती है सात बजे दुकान बन्द कर दो! फिर भी कहते है, कि हमें देश की अर्थ व्यवस्था संभालनी है ,सहयोग करो।
घण्टा सहयोग करें 7 दिन में डेढ़ करोड़ की भी शराब नहीं बिकी, ठेकेदार केवल आबकारी राजस्व देता रहे। राजस्व भी मांगोगे और दूरदर्शन पर रामायण और गीता का उपदेश भी सुनाओगे।

“गरीब के खाते में500 रुपये भेजकर अर्थ व्यवस्था नही सुधार सकते भाई, कुछ इस संकट को झेलने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति के लिए भी अतिरिक्त राशि भेजो।”

  • गरीब क्या खायेगा क्या पियेगा??

पियेगा तब ही तो जियेगा इंडिया!
राजस्व बढ़ाना है तो बिक्री बढ़ानी होगी,
इसके लिए सरकार को सार्थक कदम उठाने ही होंगे। फिर मत कहना की दारू बाजों तथा दारू विक्रेताओं ने डगमगाती अर्थ व्यवस्था सुधारने में कोई सहयोग नहीं किया।

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