जानिए संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उनसे जुड़ी हुई कुछ रोचक बातें।
लेख – एस0के0गुप्त ‘प्रखर’- सोनप्रभात
डॉ भीमराव अंबेडकर की आज परिनिर्वाण दिवस है। बाबा साहब के नाम से मशहूर भारत रत्न भीमराव अंबेडकर की परिनिर्वाण दिवस को को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज बाबा साहब के परिनिर्वाण दिवस के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।भारतीय संविधान के रचयिता, समाज सुधारक और एक महान नेता भीमराव अंबेडकर की परिनिर्वाण दिवस को भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में याद किया जा रहा है। बाबा साहब के नाम से मशहूर जीवन भर वे समानता के लिए संघर्ष करते रहे।
1.भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में हुआ था । उनका परिवार मराठी था और मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गांव से था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां भीमाबाई था। अंबेडकर महार जाति के थे। इस जाति के लोगों को समाज में अछूत माना जाता था और उनके साथ भेदभाव किया जाता था।बाबा साहब बचपन से ही बुद्धि के बहुत तेज थे लेकिन छुआछूत की वजह से उन्हें प्रारंभिक शिक्षा लेने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल में उनका उपनाम उनके गांव के नाम के आधार पर आंबडवेकर लिखा गया था। स्कूल के एक टीचर को भीमराव से बड़ा लगाव था और उन्होंने उनके उपनाम आंबडवेकर को सरल करते हुए उसे अंबेडकर कर दिया था। बाबा साहब मुंबई की एल्फिंस्टन रोड पर स्थित गवर्नमेंट स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भीमराव का चयन किया गया, जहां से उन्होंने राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया।
बाबा साहब के जीवन से जुड़े 7 रोचक तथ्य, जो आप भी नही जानते होंगे:-
1:- अंबेडकर लंदन से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करना चाहते थे लेकिन स्कॉलरशिप खत्म हो जाने की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आना पड़ा औऱ इसके बाद वे कभी ट्यूटर बने तो कभी कंसल्टिंग का काम शुरू किया लेकिन सामाजिक भेदभाव की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर वे मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए। सन 1923 में बाबा साहब ने ‘The Problem of the Rupee’ नाम से अपना शोध पूरा किया और लंदन यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि दी। 1927 में कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने उन्हें पीएचडी की उपाधि प्रदान किया।
2:- भीमराव अंबेडकर समाज में दलित वर्ग को समानता दिलाने के जीवन भर संघर्ष करते रहे। उन्होंने दलित समुदाय के लिए एक अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की। 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर की पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। बाद अंबेडकर ने अपनी मांग वापस ले ली। बदले में दलित समुदाय को सीटों में आरक्षण और मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार देने के साथ ही छुआ-छूत खत्म करने की बात मान ली गई थी।
3:- बाबा साहब ने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना किया औऱ इस पार्टी ने 1937 में केंद्रीय विधानसभा चुनावों मे 15 सीटें भी जीती। महात्मा गांधी दलित समुदाय को हरिजन कह कर बुलाते थे, लेकिन अंबेडकर ने इस बात की भी खूब आलोचना की थी। 1941 और 1945 के बीच उन्होंने कई विवादित किताबें लिखीं जिनमें ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ और ‘वॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स’ भी शामिल हैं।
4:- बाबा साहब बहुत बड़े विद्वान थे। तभी तो अपने विवादास्पद विचारों और कांग्रेस व महात्मा गांधी की आलोचना के बावजूद उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया था। इतना ही नहीं 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को भारत के संविधान मसौदा समिति का भी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। भारत के संविधान को बनाने में बाबा साहब का अहम योगदान है
भीमराव अंबेडकर वह नाम है, जिसने हर शोषित वर्ग की लड़ाई अंतिम समय तक लड़ा औऱ जीत हासिल किया।
5:- बाबासाहेब ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गए । मार्च 1952 में उन्हें राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और फिर अपनी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।
6:- भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया था।इस समारोह में उन्होंने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया था। अंबेडकर ने 1956 में अपनी आखिरी किताब बौद्ध धर्म पर लिखी जिसका नाम था ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ यह किताब उनकी मृत्यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुई।
7:- अपनी आखिरी किताब ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ को पूरा करने के तीन दिन बाद यानी कि आज 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।