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रामचरितमानस -: “गरल सुधा रिपु करइ मिताई। गोपद सिन्धु अनल सितलाई।”- मति अनुरूप- जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

गरल सुधा रिपु करइ मिताई। गोपद सिन्धु अनल सितलाई।

जब श्री सीता (भक्ति) की खोज में वानरों की टोली सभी दिशाओं में प्रस्थान की तो दक्षिण दिशा की टोली में हनुमान जी भी थे। उन्होंने सबसे अंत में प्रभु को प्रणाम किया। श्री राम ने बुलाकर उन्हें अपनी मुद्रिका ही नहीं दी बल्कि सीता को समझाने हेतु भी कहा–

पाछे पवन तनय सिरुनावा । जानि काज प्रभु निकट बोलावा।
परसा सीस सरोरुह पानी। कर मुद्रिका दीन्ह जन जानी।
बहु प्रकार सीतहिं समझाएहु। कहि वल बिरह वेगि तुम्ह आएहु।

मानो सीता को खोजना ही नहीं था, उन्हें पता था और संदेश ही भेजना था। आज प्रभु के कर कमल शीश पर पाकर हनुमान जी का जन्म सफल हो गया। क्यों नहीं, प्रभु की कृपा पाप,ताप और माया को मिटा देने वाली जो है। यही कारण था कि लंका दहन करते समय अगणित जीव जले होंगे, लोग दुखी हुए, गर्जना से राक्षसियों का गर्भपात हो गया,पर उन्हें कोई पाप नहीं लगा।

प्रभु की कृपा दैहिक, दैविक और भौतिक सभी प्रकार के पापों का शमन करने वाला है। जब उनकी पूंछ में आग लगी तो प्रलयंकारी लपटे उठी, लंका पिघल गया, समुद्र खौलने लगा, पर हनुमान जी का एक रोम भी नहीं जला–

ताकर दूत अनल जेहि सिरजा। जरा न सो तेहि कारन गिरजा।

पाप, ताप के पश्चात अब माया पर चर्चा करते हैं–
सीता (भक्ति) खोज की मार्ग पर हनुमान जी को सतोगुणी (देव लोकी सुरसा), तमोगुणी (निम्न लोकी सिंहिका) और रजोगुणी (मध्य लोकी लंकिनी) तीनों प्रकार की माया का सामना करना पड़ा। भक्ति अन्वेषण मार्ग पर ये बाधाएं आती है पर हनुमान जी बाधित नहीं हुए वरन उनसे जैसे निबटना चाहिए वैसे ही निबटा। हनुमान के शिर पर राम का हाथ जो रखा गया था।

सर्वप्रथम मार्ग में सुरसा मिली, पहले तो हनुमान जी ने राम काज बताकर इसका निवारण करना चाहा, राम का नाम लिया–
“राम काज करि फिरि मैं आवौं।”

‘राम’ नाम भी इस विघ्न का शमन नहीं कर सका। सच तो यह था कि सुरसा तो प्रतिकूल थी ही नहीं, वह तो देवताओं की प्रेरणा से हनुमान जी की योग्यता जाँचने आयी थी। राम के बाद सीता की खोज की बात निवेदित किया– ‘सीता कइ सुधि प्रभुहिं सुनावउ।’ शायद एक स्त्री की दूसरी स्त्री के साथ स्वाभाविक सहानुभूति से ही काम चल जाए, पर वह नहीं मानी–‘कवनिउ जतन देइ नहिं जाना।’  उसे तो परीक्षा लेनी थी। तब अंत में परीक्षा लेना, देना शुरू हुआ और हनुमान जी ने कहा मुझे क्यों नहीं ग्रस लेती?  सुरसा ने एक योजन का मुंह फैलाया, हनुमान को तो राम के दो अक्षरों का भरोसा था इसी बल से दोगुने हो गए। अब वह सोलह योजन मुख फैलायी, हनुमान जी पुन: दूने (बत्तीस) हुए और हर बार दूने होते गये।

तब परीक्षा लेने वाली सुरसा ने सौ योजन समुद्र के सापेक्ष मुख को सौ योजन की विस्तार दी। हनुमान जी ने सोचा अब वह समय आ गया जब इसे पार किया जान चाहिए और छोटा बनकर मुख में प्रवेश कर बाहर निकल कर विदा मांगी। पश्चात सिंहिका और लंकिनी की बाधा पार की।

अभिप्राय यह है कि भक्ति की मार्ग पर जो वाधाएं(तीनों प्रकार की माया) आती है, उनका शमन हनुमत के रास्ते करना चाहिए। सतोगुणी से विशेष रार न करे और छोटा बनकर भी उससे छुटकारा पा लें। तमोगुणी माया को सिंहिका की भांति मार डाले और अपनी छाया भी उससे बचा कर रखें वरना अल्प वास्ता से भी वह भक्ति तक नहीं पहुंचने देगी। इससे विशेष सतर्क रहने की आवश्यकता है। रजोगुणी माया को लंकिनी की तरह अधमरी करके छोड़ दे। इसे न प्रवल रहने दे न ही नष्ट करें। रजोगुणी का अन्न की भांति सेवन उतना ही करें जितनी आवश्यकता हो। संसार में इस माया का सेवन उतना ही करें जिससे शरीर भी रहे और भगवत सेवा का सामर्थ्य भी। आवश्यकता से अधिक इस माया का त्याग करना ही श्रेयस्कर है।

सियावर रामचंद्र की जय

–जयंत प्रसाद

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Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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