gtag('config', 'UA-178504858-1'); रामचरितमानस-: “रावन मरन मनुजकर जाचा। प्रभु विधि वचन कीन्ह चह साचा।“- मति अनुरुप- अंक 37. जयंत प्रसाद - सोन प्रभात लाइव
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रामचरितमानस-: “रावन मरन मनुजकर जाचा। प्रभु विधि वचन कीन्ह चह साचा।“- मति अनुरुप- अंक 37. जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

खर दूषन मोहिं सम बलवन्ता। तिन्हहिं को मारइ बिनु भगवन्ता।

श्री रामचरितमानस की शूर्पणखा के द्वारा जब रावण ने खर दूषण के वध का समाचार सुना तो रात में उसे नींद नहीं आई। विचार करने लगा कि तीनों लोकों में मेरे सेवकों की भी बराबरी करने वाला कोई नहीं है, फिर खर और दूषण तो मेरे समान ही बलवान थे, भला बिना भगवान के उनका वध कौन कर सकता है? अतः यदि वह वास्तव में भगवान हैं तो उनके वाणों से प्राण त्याग कर अपना परलोक सुधार लूंगा क्योंकि इस तामसी शरीर से भजन तो होगा नहीं। यदि मनुष्य होंगे तो उन्हें जीत कर उनके नारी को भोग्या बनाऊंगा।

इस प्रकार राम नर हैं कि नारायण रावण इसी की परीक्षा में झूलता रहा और अंत तक यह निश्चय नहीं कर पाया कि राम नर हैं या नारायण। रावण ने सुन रखा है कि–  “पुरुष सिंह बन खेलन आए।” अतः यदि वे शिकारी हैं तो मारीच को सुंदर मृग बनने को कहूँ, यदि भगवान होंगे तो कपट मृग के पीछे उठेंगे ही नहीं, तब उसी समय युद्ध ठान दूंगा और प्रभु के बाणों से प्राण त्याग कर लूंगा और यदि कपट मृग के पीछे उठे तो निश्चय ही वे राजपुत्र हैं उनकी भार्या का हरण कर उसका भोग करूंगा। इधर रावण ने यह युक्ति बनाई और उधर राम ने सीता को अग्नि में प्रवेश कराकर नर लीला करने की योजना बनाई।

रावण राम के ईश्वरत्व को जानना चाहता है पर राम अपने को नर के रूप में ही प्रस्तुत कर रहे हैं।

रावन मरन मनुजकर जाचा। प्रभु विधि वचन कीन्ह चह साचा।

तभी तो रावण का वध हो सकेगा। अभी-अभी खर दूषण वध में ईश्वरीय लीला हुई–  “देखहिं परस्पर राम”  इस कारण कपट मृग के पीछे दौड़कर और सीता हरण कराकर वे नर ही हैं रावण को भ्रमित कर दिया। सीता हरण के पश्चात सीता को अपनाने का रावण का हर प्रयास विफल हुआ और अशोक वाटिका में स्थान देना पड़ा। रावण को यह शाप था कि यदि वह किसी भी स्त्री का बलात्कार करेगा तो उसका मस्तक फट जाएगा। इसी कारण रावण ने सीता को साम (सुमुखि सयानी कहकर) दान (मंदोदरी आदि को दासी बनाने का वचन देकर) भेद (एक बार के लिए भी राजी होने को कहकर) और अंत में दंड का भय दिखाकर मनाना चाहा–

मास दिवस महु कहा न माना। तो मैं मारबि काढि कृपाना।

इस प्रकार रावण द्वारा साम दान दंड भेद का प्रयोग भी असफल हुआ।

अतः यह बात कि रावण राम को भगवान जानकर रार ठाना, गलत है। यदि वह उन्हें भगवान समझ लेता तो मरता ही नहीं या वरदान झूठी हो जाती। याज्ञवल्क्य जी जो मानस के प्रधान वक्ता हैं वह स्पष्ट कह रहे हैं कि – “रावण राम के ईश्वरत्व को नहीं जान सका–

करि छलु मूढ हरी वैदेही। प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही।

यदि राम को वह ईश्वर जानता तो लक्ष्मण की पत्रिका वाँचकर भयभीत क्यों होता, समुद्र बंधन का समाचार सुनकर व्याकुल हो दसों मुख से क्यों बोल पड़ता–

सुनत श्रवन वारिध बंधना। दसमुख बोलि उठा अकुलाना।

लक्ष्मण के होश में आने पर दुखी होना और कुंभकर्ण की मृत्यु पर विलाप करना आदि अनेक बातों से यह स्पष्ट है कि वह राम को मनुष्य ही माना।  मंदोदरी भी कहती है–

काल बिवस पति कहा न माना। अग जग नाथ मनुज करि जाना।

अतः मेरे मति के अनुसार रावण ने अंत तक राम को मनुष्य ही माना।

 

जय जय श्री सीताराम

  -जयंत प्रसाद

 

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रामचरितमानस-: “मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीति। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीति। “- मति अनुरुप- अंक 36. जयंत प्रसाद

 

 

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Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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