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रामचरितमानस-: “निरमल मन जन सो मोहिं पावा। मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।” – मति अनुरूप- जयंत प्रसाद

सोनप्रभात- (धर्म ,संस्कृति विशेष लेख) 

– जयंत प्रसाद ( प्रधानाचार्य – राजा चण्डोल इंटर कॉलेज, लिलासी/सोनभद्र )

–मति अनुरूप–

ॐ साम्ब शिवाय नम:

श्री हनुमते नमः

निरमल मन जन सो मोहिं पावा। मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।

श्री रामचरितमानस की यह चौपाई यह संकेत कर रहा है, कि ईश्वर या उनकी भक्ति प्राप्त करने के लिए मन की निर्मलता परमावश्यक है। ईश्वर को छल- कपट आदि दोष नहीं भाता क्योंकि जो सर्वज्ञ है उससे छिपाव अर्थात अभी तो आप ईश्वर को ईश्वर समझ ही नहीं रहे। इस संदर्भ में प्रभु से मारुति मिलन प्रसंग की चर्चा करना चाहूंगा।

सर्वप्रथम महाराज सुग्रीव के आदेश पर हनुमान जी विप्रवेष में प्रभु के पास गए। आदेश यही था-

“धरि बटु रूप देखु तैं जाई।” इस कारण विप्रवेष में प्रभु के पास गये–

विप्ररूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ।

यहाँ पर विप्र का एक क्षत्रिय के सामने शीश झुकाना असंगत लगता है। सच्चाई तो छुपती ही नहीं। हनुमान जी विप्र तो हैं नहीं,  कपट वेष के कारण उन्हें यह खयाल ही नहीं रहा कि एक विप्र क्षत्रिय के समक्ष शीश नहीं झुकाता।

दूसरी बात सच्चे भक्त हनुमान जी जो ईश्वरावतार हेतु प्रतीक्षारत हैं, उन्हें आभास हो रहा है, कहीं वे यही तो नहीं? उनके प्रश्न से भी यही झलकता है ‘छत्री रूप फिरहु बन वीरा।’ आप क्षत्रिय के रूप में हैं ,अर्थात क्षत्रिय नहीं है। या फिर आप-

की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ। नर नारायण की तुम्ह दोऊ।
की तुम्ह अखिल भुवनपति, लीन्ह मनुज अवतार।

इस कारण भी हनुमान जी का शीश झुकाना स्वाभाविक लगता है।

श्री राम जी ने अपना समयानुसार परिचय देते हुए हनुमान जी का परिचय पूछा। इस पर परम भक्त, परम योगी हनुमान जी प्रभु को पहचान उनके चरणों में गिर गए और परमानंद का अनुभव किया-

प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहीं बरना।
और नाना स्तुति करने लगे।

तत्पश्चात तीन चौपाई और एक दोहे के सोलह पदों में अपनी शरणागति निवेदन की और इस बीच चार बार ऐसा समय आया जब प्रभु को उनकी शरणागति स्वीकार कर ही लेनी थी पर श्रीराम खड़े मुस्कुराते रहे क्योंकि अभी तो हनुमान जी ने अपना कपट (वेष) त्यागा ही नहीं, परंतु ज्योहीं हनुमान जी ने कपट वेष त्यागा, प्रभु ने गले से लगाकर उन्हें अपना लिया। यथा –

अस कहि परेउ चरन अकुलाई। निजतनु पगटि प्रीति उर छाई।

तब-

तब रघुपति उठाई उर लावा। निज लोचन जल सींचि जुड़ावा।

इस प्रकार प्रभु ने हनुमान को अपनी शरण में ले लिया। मारीच बध प्रसंग में भी मारीच के कपट वेष त्यागने पर ही प्रभु ने अपने शरण का आश्रय प्रदान किया। यथा –

प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा। सुमेरिसि राम समेत सनेहा।
अन्तर प्रेम तासु पहिचाना। मुनि दुर्लभ गति दीन्ह सुजाना।

दोनों ही जब मन वचन और कर्म से निष्कपट समर्पित हुए तभी शरणागति स्वीकार की गयी। श्री हनुमान जी के – ‘अस कहि'(बचन) परेउ चरन (कर्म) और ‘प्रीति उर छाई'( मन ) तथा मारीच के- सुमिरेसि (वचन और कर्म) ‘समेत सनेहा (मन) पूर्ण निष्कपट समर्पण ही स्वीकार हुआ-

निरमल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।

सियावर रामचंद्र की जय

–जयंत प्रसाद

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Ashish Kumar Gupta

Ashish Kumar Gupta is an Indian news anchor and journalist, who is the managing director and editor-in-chief of Son Prabhat Web News Service Private Limited Sonbhadra India. In the field of journalism, this journalist, who constantly talks about social interest and public welfare with his pen, is establishing a new dimension in the journalism of the district. Email - Editor@sonprabhat.live

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