मेरी प्रथम काव्यकृति- “वीरांगना लक्ष्मीबाई” (दोहावली) – सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”

सोन प्रभात – लक्ष्मीबाई जन्म दिवस विशेष
नमन करो स्वीकार तुम,हे गण पति महराज!
लेखन का सामर्थ्य दो,होय सफल सब काज!!
हे माँ वीणा वादिनी, कर मुझ पर उपकार!
शब्दों को विस्तार दो,भावों को आकार!!
चले खूब यह लेखनी, लिखूँ गीत औ छंद!
मसि इसकी सूखे नहीँ ,भरो ह्रदय आनन्द !!
करूँ समर्पित लेखनी,उन वीरों के नाम!
माटी चंदन कर गए ,कभी तिरंगा थाम!!
काशी। में पैदा हुई,। मोरो पँत के गेह,
माँतु भगीरथि से मिला,उसे असीमित नेह!!
बचपन में माँ छोडकर, गई स्वर्ग के धाम!
माता बन तब पिता ने,पूर्ण किये सब काम !!
लेकर गये बिठूर तब । पाया नाना संग !
सिख लाया गुरु बन इसे,युद्ध कला का ढंग!!
लिये हाथ तलवार वह, थामी अश्व लगाम!
गुरु नाना को सँग ले,चहके सुबहो शाम !!
हुई सयानी देख पितु, झाँसी पकड़ी राह!
गंगा धर राजा वहाँ, किया मनु संग व्याह!!
कम वय में रानी बनी, पर था तेज अपार!
आजादी की चाह थी,भरे ह्रदय अंगार !!
असमय राजा चल बसा ,देकर दत्तक पूत!
लक्ष्मी तब रानी बनी, कर दिल को मजबूत!!
कुटिल चाल अंग्रेज की, खूब हुआ तकरार!
बच्चा नाबालिग अभी,नहीं राज्य अधिकार!!
झांसी दे दो तुम मुझे, गोरों का अधिकार!
क्रोधित हो तब शेरनी, भरे नेत्र अंगार!!
झांसी दूंगी ना कभी , सुन गोरे गद्दार !
दे दूंगी मैं प्राण निज, यह मेरा अधिकार!!
झांसी पर डाली नजर, डलहौजी ने आय!
सबला को अबला समझ,दिया पंख फैलाय!!
व्यापारी बन आए जो, करते कत्ले आम!
सन सत्तावन का गदर, बना महा संग्राम!!
ले सखियों को साथ वह, संग महा बलवान!
दो दो करने हाथ फिर, कूद पड़ी मैदान!!
चम चम चम तलवार ले, दह दह दह दहकाय!
झांसी की रानी चली, चह चह चह चहकाय!!
गम गम गम गमके उधर, दुश्मन खड़ा दिखाय!
मूली सा सर काटकर, मर्दानी बन जाय!!
मह मह मह महके गगन, केश रिया लहराय!
रानी झांसी चल पड़ी, दुश्मन को दहलाय!!
धर चण्डी का रूप वह, निकली ले तलवार!
भागे गोरे छोड़कर, होकर तब लाचार!!
शेष अगले अंक में!!
-सुरेश गुप्त “ग्वालियरी”